संक्रांति 2025: सूर्य के राशि परिवर्तन का पर्व, स्नान, दान और पूजा से मिलता है शुभ फल

संक्रांति 2025: सूर्य के राशि परिवर्तन का पर्व, स्नान, दान और पूजा से मिलता है शुभ फल
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संक्रांति का धार्मिक महत्व

सनातन धर्म में संक्रांति तिथि का विशेष महत्व माना जाता है। यह पर्व हर महीने उस दिन मनाया जाता है जब सूर्य अपनी स्थिति बदलते हुए एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। ज्योतिषीय दृष्टि से यह दिन अत्यंत शुभ और फलदायी होता है। संक्रांति को धर्म, आस्था और पुण्य से जुड़ा पर्व कहा जाता है, जो व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।

गंगा स्नान और पुण्य कर्म

संक्रांति के अवसर पर गंगा स्नान करना अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस दिन नदी स्नान करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। कई श्रद्धालु इस दिन तीर्थ स्थलों पर जाकर स्नान और पूजा-अर्चना करते हैं। गंगा स्नान के साथ-साथ अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना भी समान फलदायी माना जाता है।

पूजा, जप और तप का महत्व

संक्रांति पर भक्त न केवल स्नान करते हैं बल्कि विशेष पूजा और आराधना भी करते हैं। इस दिन सूर्य देव की उपासना करना और जप-तप करना बेहद लाभकारी माना जाता है। श्रद्धालु व्रत रखकर और मंत्र जाप करके आध्यात्मिक शक्ति अर्जित करते हैं। संक्रांति का यह पर्व व्यक्ति को आत्मिक शांति और ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव प्रदान करता है।

दान-पुण्य का महत्व

संक्रांति के दिन दान करने की परंपरा सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन तिल, गुड़, वस्त्र, अन्न और दक्षिणा का दान विशेष पुण्यफल देने वाला होता है। धर्मग्रंथों के अनुसार संक्रांति पर किया गया दान कई गुना बढ़कर फल देता है। यही कारण है कि संक्रांति को दान और धर्म का पर्व कहा जाता है।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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