सरस्वती पूजा 2025: शारदीय नवरात्रि में 29 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर को संपन्न होगी मां सरस्वती की आराधना

सरस्वती पूजा 2025: ज्ञान और विद्या की देवी की उपासना
हिंदू धर्म में मां सरस्वती को विद्या, कला और संगीत की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। शारदीय नवरात्रि के दौरान मां सरस्वती की विशेष पूजा की परंपरा है। इस साल सरस्वती पूजा का शुभारंभ 29 सितंबर 2025 से हुआ और इसका समापन 2 अक्टूबर 2025 को होगा। इन चार दिनों में मां सरस्वती की आराधना, पूजा-अर्चना और सांस्कृतिक आयोजनों का विशेष महत्व रहेगा।
सरस्वती पूजा की तिथि और परंपराएं
शारदीय नवरात्रि में सप्तमी से लेकर दशमी तक मां सरस्वती की उपासना की जाती है। सप्तमी को सरस्वती आवाहन होता है, अष्टमी और नवमी को मां सरस्वती की विशेष पूजा और अर्चना की जाती है, जबकि दशमी को सरस्वती विसर्जन होता है। इस दौरान भक्तजन मां सरस्वती से ज्ञान, बुद्धि और कला में प्रगति की कामना करते हैं।
सरस्वती पूजा का महत्व
सरस्वती पूजा का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और शैक्षिक दृष्टि से भी गहरा है। मान्यता है कि इस पूजा से साधक को विद्या और विवेक की प्राप्ति होती है। विद्यार्थी, कलाकार और विद्वान इस अवधि में मां सरस्वती की विशेष उपासना करते हैं। इस दौरान पंडालों और मंदिरों में मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और जगह-जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
पूजा विधि और मान्यताएं
सरस्वती पूजा में सबसे पहले मां की प्रतिमा को स्वच्छ और सुंदर स्थान पर स्थापित किया जाता है। पूजा में पीले या सफेद फूल, फल, दीप और प्रसाद चढ़ाया जाता है। विद्यार्थी अपनी किताबें और वाद्ययंत्र मां सरस्वती के चरणों में अर्पित करते हैं, ताकि देवी का आशीर्वाद प्राप्त हो। नवमी के दिन ‘सरस्वती बलिदान’ और दशमी को विसर्जन की परंपरा निभाई जाती है।
समाज और संस्कृति में सरस्वती पूजा
यह पर्व केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में शिक्षा और संस्कृति को बढ़ावा देने का प्रतीक भी है। विशेषकर पूर्वी भारत, बंगाल, बिहार, असम और ओडिशा में सरस्वती पूजा बड़े उत्साह से मनाई जाती है। स्कूल, कॉलेज और शैक्षणिक संस्थान इस अवसर पर विशेष आयोजन करते हैं।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।