दर्दनाक: फोन नहीं आया तो बेटे को ढूंढने निकले मां-बाप, खोज बनी एक के लिए अंतिम सफर

साल्ट लेक सेक्टर फाइव में एक बुजुर्ग मां की मौत। बेटे का फोन न आने पर हुई बेचैनी में निकल पड़ी बेटे को ढूंढने। वृद्ध पिता भी घायल... दिल को झकझोर देने वाली बेहद दर्दनाक कहानी...

दर्दनाक: फोन नहीं आया तो बेटे को ढूंढने निकले मां-बाप, खोज बनी एक के लिए अंतिम सफर
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कभी-कभी जिंदगी छोटे-छोटे मुद्दों पर ऐसा करवट बदल लेती है कि जीवन भर का पछतावा सामने आ खड़ा होता है और फिर समझ नहीं आता किसे किस बात का दोष दिया जाए। बुधवार की सुबह पानिहाटी के असीम दास (70) और उनकी पत्नी आरती (60) के लिए भी कुछ ऐसा ही था। रोज की तरह वे पड़ोसी के घर बैठे अपने छोटे बेटे अनूप के फोन का इंतजार कर रहे थे। दोनों मोबाइल नहीं रखते, इसलिए उसी पड़ोसी की घंटी उनके लिए दुनिया से जोड़ने वाली एकमात्र डोरी थी।

उस दिन फोन नहीं आया। बस इतना सा हुआ और दोनों के मन में डर बैठ गया। फिर वह डर बढ़ता गया, संभालते संभालते बेचैनी बन गया। माता-पिता अपने बेटे के लिए गलती से आए बुरे ख्याल को भी कैसे नजरअंदाज कर पाते? शायद इसी वज़ह से दोनों को घर से निकलने पर मजबूर हो गए।

“चलो, खुद देख आते हैं। कहीं कुछ हो न गया हो।” यही ख्याल शायद उनके कदमों को साल्ट लेक सेक्टर फाइव की ओर खींच लाया।

लेकिन किसे पता था कि यह रास्ता आरती दास के लिए आखिरी साबित होगा।

कॉलेज मोड, वहां जहां दिन भर ट्रैफिक थमता ही नहीं। लोग जल्दी में, बसें तेजी में और बीच में एक साधारण सी बुजुर्ग मां, जो सिर्फ अपने बेटे की कुशल खबर चाहती थी। उन्होंने जैसे ही सड़क पार करने के लिए कदम बढ़ाया, सिग्नल की हरी रोशनी शायद उनकी नजर में नहीं आई थी। तभी एक बस मुड़ते हुए उनसे टकरा गई। इतनी तेजी, इतनी अचानक कि वह संभाल भी नहीं पाई। उनके पति असीम भी घायल हुए, लेकिन आरती… वह बच नहीं सकी।

उन्हें अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने कोशिश की, पर किस्मत को एक परिवार के लिए सबसे विडम्बना लिखना मंजूर हुआ था। असीम अस्पताल में बैठे सिर्फ एक बात दोहराते रहे कि वे बस बेटे को देखने जा रहे थे। बस इतना ही...

जब पुलिस ने बेटों को खोजा, तो पता चला अनूप बिलकुल ठीक है। पिछले दो साल से माता-पिता से मिलने भी नहीं आया था। उसे अंदाजा भी नहीं था कि उसका एक फोन कॉल न कर पाना उसकी मां को हमेशा के लिए सबसे दूर कर देगा

सोचिए, एक मां जिन्होंने अपने बेटे को हर चोट पर सहलाया, हर डर में ढांढस दिया, वही मां एक साधारण सी चिंता में सड़क पर ऐसे गिर गईं जैसे जिंदगी ने उन्हें अचानक धक्का दे दिया हो। किसी यातायात नियम से बड़ी कहानी यह है कि चिंता, प्यार और डर ने उनके कदम घर से बाहर निकलवाए और मौत ने जिंदगी को रेड सिग्नल दिखा दिया।

आरती दास की कहानी बस एक सड़क हादसा नहीं। यह एक मां की धड़कन है जो बेटे की आवाज न सुन पाने की बेचैनी में थम गई। यह बेहद आम सी और बेहद कड़वी सच्चाई है... और शायद इसलिए, बेहद दर्दनाक भी।
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