वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, सरकार को एक सप्ताह में देना होगा जवाब

वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, सरकार को एक सप्ताह में देना होगा जवाब
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नई दिल्ली – वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज एक अहम सुनवाई की। इस दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह मामले में सात दिनों के भीतर अपना पक्ष पेश करे। अदालत ने यह आदेश एक अंतरिम निर्देश के रूप में जारी करते हुए सॉलिसिटर जनरल के उस बयान को भी रिकॉर्ड पर लिया, जिसमें उन्होंने सरकार की ओर से जवाब दाखिल करने की सहमति दी।

क्या है वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 विवाद?

वक्फ अधिनियम 1995 में हाल ही में किए गए संशोधन को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है। नए संशोधन के तहत वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन, अधिग्रहण और विवाद निपटान की प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जिसे कुछ याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 14, 25 और 26 का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी है। उनका तर्क है कि संशोधन एकतरफा अधिकार देता है और इससे नागरिकों की संपत्ति पर अनुचित दखल हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को गंभीरता से लेते हुए केंद्र सरकार से जल्द जवाब मांगा। अदालत ने साफ कहा कि इस तरह के संवेदनशील और संवैधानिक प्रश्नों पर न्यायालय चुप नहीं बैठ सकता। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल द्वारा दिए गए आश्वासन को भी रजिस्टर्ड करते हुए कहा कि केंद्र को 7 दिन के भीतर विस्तृत हलफनामा दाखिल करना होगा, जिसमें संशोधन के पीछे के कारण, उसका कानूनी आधार और इसके संभावित प्रभावों पर प्रकाश डाला जाएगा।

याचिकाकर्ताओं की ओर से क्या कहा गया?

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि नया संशोधन निजी संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड का दावा स्थापित करने का रास्ता खोलता है, जिससे आम नागरिकों की संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। इसके अतिरिक्त, वक्फ ट्रिब्यूनल की शक्तियों में विस्तार को लेकर भी चिंता जताई गई है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया का केंद्रीकरण और पारदर्शिता की कमी का खतरा उत्पन्न होता है।

आगे क्या?

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अगली सुनवाई की तारीख जल्द निर्धारित की जाएगी, जिसमें केंद्र के हलफनामे को ध्यान में रखते हुए आगे की कार्यवाही की जाएगी। यह मामला न केवल वक्फ प्रबंधन से जुड़ा है, बल्कि यह भारत के संविधान में दिए गए न्यायिक अधिकारों, धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति अधिकारों से भी सीधा जुड़ाव रखता है।

सुप्रीम कोर्ट का यह अंतरिम आदेश वक्फ अधिनियम जैसे संवेदनशील विषयों पर न्यायिक निगरानी की आवश्यकता को दर्शाता है। अगले कुछ दिनों में सरकार का रुख साफ होगा कि आखिर इस संशोधन के पीछे की मंशा क्या है और क्या यह देश के संविधान के अनुरूप है। सभी की नजरें अब अदालत की अगली सुनवाई और केंद्र की प्रतिक्रिया पर टिकी हैं।

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