यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र शामिल, अखिल भारतीय संत समिति ने जताई प्रसन्नता

यूनेस्को ने श्रीमद्भगवद्गीता और भरतमुनि के नाट्यशास्त्र को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया। अखिल भारतीय संत समिति ने इसे भारतीय सनातन संस्कृति की वैश्विक मान्यता बताया।

यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र शामिल, अखिल भारतीय संत समिति ने जताई प्रसन्नता
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भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और दार्शनिक परंपरा को सम्मानित करते हुए यूनेस्को ने श्रीमद्भगवद्गीता और भरतमुनि के नाट्यशास्त्र को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया है। इस ऐतिहासिक निर्णय का स्वागत करते हुए अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त की है।


उन्होंने कहा, “यूनेस्को के वर्ल्ड मेमोरी रजिस्टर में श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र का सम्मिलित होना भारतीय सनातन संस्कृति की वैश्विक स्वीकृति का प्रतीक है। इससे पूर्व भी सनातन धर्म के 12 ग्रंथ इस रजिस्टर में दर्ज किए जा चुके हैं। हम सदा से कहते आए हैं कि भारत अपनी मेधा, विद्या और ज्ञान के बल पर जगद्गुरु था, है और रहेगा।”


स्वामी जीतेन्द्रानंद ने आगे कहा, “यूनेस्को को भारतीय प्राचीन वांग्मय के प्रत्येक ग्रंथ की महत्ता को एक न एक दिन स्वीकारना ही होगा। यह केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान नहीं है, बल्कि यूनेस्को की अपनी प्रामाणिकता और महत्ता को भी बढ़ाता है।”


इस निर्णय के साथ, अब भारत के कुल 14 अभिलेख यूनेस्को के इस अंतरराष्ट्रीय रजिस्टर में दर्ज हो चुके हैं। 17 अप्रैल 2025 को यूनेस्को ने 74 नई दस्तावेजी धरोहरों को इस रजिस्टर में जोड़ा, जिससे इसकी कुल संख्या 570 हो गई है।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे सभी भारतीयों के लिए गर्व का क्षण बताया। उन्होंने कहा, “गीता और नाट्यशास्त्र ने सदियों से सभ्यता और चेतना को पोषित किया है। इनकी अंतर्दृष्टि आज भी दुनिया को प्रेरणा देती है।”


केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इसे भारत की सभ्यतागत विरासत के लिए ऐतिहासिक क्षण बताया। उन्होंने कहा, “ये ग्रंथ केवल साहित्यिक धरोहर नहीं, बल्कि दार्शनिक और सौंदर्यशास्त्रीय आधार हैं, जिन्होंने भारत की विश्व दृष्टि को आकार दिया है।”


यह रजिस्टर यूनेस्को द्वारा 1992 में शुरू किया गया एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य विश्व की महत्वपूर्ण दस्तावेजी धरोहरों को संरक्षित करना और उन्हें सभी के लिए सुलभ बनाना है। श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र को इसमें शामिल किया जाना भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत की वैश्विक स्वीकृति को और सुदृढ़ करता है।

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