विवाह पंचमी 25 नवंबर: श्रीराम–सीता के पवित्र मिलन की तिथि, तुलसीदास ने इसी दिन पूर्ण किया था श्रीरामचरितमानस

मार्गशीर्ष मास का शुक्ल पक्ष हिंदू धर्म में शुभ कार्यों का काल माना जाता है। इसी पवित्र पक्ष की पंचमी तिथि, जो इस वर्ष 25 नवंबर को पड़ रही है, विवाह पंचमी के नाम से विशेष रूप से मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में इसी दिन अयोध्यापति भगवान श्रीराम और जनकनंदिनी देवी सीता का विवाह जनकपुर में संपन्न हुआ था। यही कारण है कि यह तिथि वैवाहिक जीवन की मंगलता और दांपत्य सुख का प्रतीक मानी जाती है। इस शुभ अवसर पर देशभर के मंदिरों में विशेष अनुष्ठान और पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है, जहां बड़ी संख्या में भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
विवाह पंचमी का महत्व केवल श्रीराम–सीता के दिव्य विवाह तक सीमित नहीं है, बल्कि इस दिन का संबंध हिंदू साहित्य की अमूल्य धरोहर से भी जुड़ा हुआ है। परंपरा के अनुसार महान कवि गोस्वामी तुलसीदास ने इसी तिथि पर अपने अद्वितीय ग्रंथ श्रीरामचरितमानस का लेखन कार्य पूर्ण किया था। माना जाता है कि प्रभु राम के जीवनचरित से जुड़े इस महाकाव्य को संपन्न करने के लिए स्वयं भगवान की दिव्य कृपा तुलसीदास जी पर बरसी, जिससे यह तिथि और भी शुभ और पुण्यफलदायी बन जाती है।
इस पर्व पर भक्त राम और सीता के मंदिरों में विशेष पूजा, भजन-कीर्तन और विवाहोत्सव के प्रतीक स्वरूप धूमधाम से उत्सव मनाते हैं। कई स्थानों पर राम-सीता विवाह की झांकी सजाई जाती है, जिसमें भक्त उत्साहपूर्वक शामिल होकर इस दिव्य मिलन का पुनः स्मरण करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान राम और माता जानकी के दर्शन करने तथा विवाह समारोह में प्रतीकात्मक रूप से सम्मिलित होने से वैवाहिक जीवन में सौभाग्य, प्रेम और स्थायित्व बढ़ता है।
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