खुद नहीं पढ़-लिख सके, ठेले पर चना-भूंजा बेच बेटे को बनाया आइआइटीयन
- In बिहार 29 May 2019 11:08 AM IST
सोच बदलती है तो पीढ़ियां बदलती हैं, और पीढ़ियां बदलती हैं तो देश भी बदलता है। सड़क किनारे ठेला लगाकर चना-भूंजा बेचने वाले राजू प्रसाद गुप्ता इसी सोच का पर्याय और उनके पुत्र सत्यप्रकाश इस बदलाव का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। सड़क किनारे ठेला लगाकर चना-भूंजा बेचने वाले राजू प्रसाद गुप्ता और उनके बेटे सत्यप्रकाश के जज्बे, संघर्ष और सफलता की यह प्रेरक गाथा सुखद बदलाव का सशक्त संदेश है।
बिहार के औरंगाबाद जिले के देव प्रखंड के बुढ़वा महादेव निवासी राजू प्रसाद खुद पढ़-लिख नहीं सके। मुफलिसी थी, परिवार के भरण-पोषण के लिए ठेला पर चना-भूंजा बेचने लगे। लेकिन बच्चों की शिक्षा के लिए लालायित। दो पुत्र और एक पुत्री, किसी की भी शिक्षा में कोई कमी नहीं। जो कमाते उसी से पेट काटकर बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करते रहे। ऐसे हालात भी आए, जब फीस के पैसे नहीं होते। पिता दोगुनी मेहनत करता। एक जुनून था कि खुद नहीं पढ़ सके तो क्या हुआ, बच्चों को इतना काबिल बना दें कि दुनिया देखे।
बेटे ने भी पिता की मेहनत और प्रण का मान रखा। सबसे बड़े बेटे सत्यप्रकाश ने 2015 में सीबीएसई से बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, आइआइटी) में नामांकन के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा (ज्वाइंट एंट्रेंस एक्जामिनेशन, जेईई) का भी फार्म दाखिल कर दिया था। प्रतिभा और मेहनत ही उनके संबल थे। पिता की मजबूरियों से वाकिफ। पहले प्रयास में ही सफलता मिल गई। अब दो छोटे भाई-बहन भी इसी राह पर हैं, जो फिलहाल स्कूल में पढ़ रहे हैं।
सत्यप्रकाश ने आइआइटी, गुवाहाटी में कंप्यूटर साइंस में दाखिला लिया। बीटेक के अंतिम वर्ष के छात्र हैं, जिनका एक बड़ी कंपनी में इसी साल अच्छे पैकेज पर कैंपस सेलेक्शन हो गया है। उन्होंने कहा कि घर की हालत छिपी नहीं थी। इसे समझता था, इसलिए कभी मेहनत में कोई कमी नहीं छोड़ी। माता-पिता का संघर्ष, शिक्षकों की मेहनत और साथियों के प्रोत्साहन ने हमेशा प्रेरणा दी।
पिता राजू प्रसाद कहते हैं, बेटे की सफलता की खबर सुनते ही जीवन के सारे कष्ट भूल गया। चने बेचकर बेटे को पढ़ाया। मेरे पास मकान छोड़ कुछ नहीं है। लेकिन आज मेरे पास दुनिया की सबसे बड़ी पूंजी है। मैं भले नहीं पढ़ सका, पर बेटे ने उसकी भरपाई कर दी।