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सत्‍ता संग्राम: दिल्ली के विपरीत बहती है भागलपुर की सियासी हवा, जानिए

सत्‍ता संग्राम: दिल्ली के विपरीत बहती है भागलपुर की सियासी हवा, जानिए

पिछले 20 वर्षों से भागलपुर...Editor

पिछले 20 वर्षों से भागलपुर संसदीय क्षेत्र में सियासत की हवा उल्टी बहती आ रही है। 2014 में प्रचंड मोदी लहर में भी यहां भाजपा की हार हो गई और जब तक केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही तब तक भागलपुर में भगवा लहरता रहा। यह सिलसिला 1998 के बाद से चलता आ रहा है। केंद्र में जिसकी भी सरकार रही, भागलपुर में उसकी हार हुई। दिल्ली से आखिरी तालमेल अटल सरकार के दौरान था, जब प्रभाष चंद्र तिवारी एमपी थे और वाजपेयी पीएम। उसके सबका तालमेल गड़बड़।

महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं

पहले महागठबंधन की बात। राजद में बुलो मंडल का तो कोई विकल्प नहीं दिख रहा है, लेकिन कांग्रेस के स्थानीय कर्णधारों की महात्वाकांक्षा से राजद की परेशानियों में इजाफा तय है। अजित शर्मा के तेवर से कांग्रेस अभी पूरी तरह उबर भी नहीं पाई है कि सदानंद सिंह के नीतीश प्रेम ने दिल्ली-पटना को सतर्क कर दिया है। पांच महीने पहले सदानंद सिंह के घर जाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चर्चाओं को पंख लगा दिए हैं।


बातें कुछ हवा में भी है। पर्दा खुलने का इंतजार है। आठ बार से विधायक बनते आ रहे सदानंद सिंह अगर लोकसभा की ओर प्रस्थान करना चाहें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कद इतना बड़ा है कि टिकट तो कोई भी दे सकता है। पिता नहीं तो पुत्र ही सही। सदानंद और अजित की अभिलाषा का असर सीधा गठबंधन की राजनीति पर पड़ सकता है, जिसे बुलो मंडल के लिए मंगलकारी नहीं माना जा सकता है।

भाजपा-जदयू की नई दोस्ती की परख तय


पिछले चुनाव में जदयू के टिकट पर अबू कैसर ने 1.32 लाख वोट काटकर शाहनवाज की हार तय कर दी थी। अबकी कैसर हाशिये पर हैं। ऐसे में भाजपा-जदयू की नई दोस्ती की परख होनी है। सुल्तानगंज के जदयू विधायक सुबोध राय की महत्वाकांक्षा भी अभी जिंदा होगी। भागलपुर ने उन्हें भी एक बार सांसद बनाया है तो दोबारा क्यों नहीं?

1996 से लेकर अबतक छह संसदीय चुनावों में भागलपुर में भाजपा की हार-जीत का हिसाब बराबर है। तीन-तीन बार दोनों। अबकी फिर प्रयास है, लेकिन प्रत्याशी पर सवाल अटक जाता है। पिछली बार शाहनवाज हुसैन को करीबी मुकाबले में राजद के बुलो मंडल ने हरा दिया था। भागलपुर में भाजपा में कई खेमों में बंटी है।


अतीत की राजनीति

भागलपुर की शुरुआती सियासत कांग्रेस की रही है। पहली बार बनारसी प्रसाद झुनझुनवाला सांसद चुने गए थे। उसके बाद लगातार तीन बार भागवत झा आजाद पर मतदाताओं ने भरोसा किया। 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में लोकदल के टिकट पर डॉ. रामजी सिंह ने भागवत झा को हराया। आजाद ने फिर वापसी की और लगातार दो बार चुने गए। चुनचुन प्रसाद भी तीन बार लोकसभा पहुंचे। प्रभाष चंद्र तिवारी, सुबोध राय, सुशील मोदी एवं शाहनवाज हुसैन जीतते रहे हैं।


2014 के महारथी और वोट

बुलो मंडल : राजद : 367623

शाहनवाज हुसैन : भाजपा : 358138

अबू कैसर : जदयू : 132256

रामजी मंडल : निर्दलीय : 18937

विधानसभा क्षेत्र

बिहपुर (राजद), पीरपैंती (राजद), कहलगांव (कांग्रेस), भागलपुर (कांग्रेस), नाथनगर (जदयू), गोपालपुर (जदयू)

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