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लालू की लाठी से तेजस्‍वी के लैपटॉप तक, RJD ने तय किए बड़े मुकाम

एक जमाना था जब राष्‍ट्रीय जनता...Editor

एक जमाना था जब राष्‍ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव बैलगाड़ी पर सवार होकर महंगाई के खिलाफ रैली निकालते हैं तो कभी 'लाठी उठावन-तेल पिलावन महारैला निकालकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियां बटोरते थे। लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक सफर पर नजर डालें तो वे एेसा काम करते थे जो आम जनता के दिमाग में सीधे असर करती थी और यही वजह थी कि लालू जनमानस से आसानी से जुड़े थे और उनका जनाधार था।

लालू ने किया था लाठी महारैला

साल 2003 में अपने जनाधार को बचाने के लिए लालू ने लाठी महारैला किया था और नारा दिया था-'लाठी उठावन-तेल पिलावन'। आज वक्त बदला है और लालू की पार्टी राजद में पिछले दो दशकों में कई बदलाव हुए हैं। अब राजद ने लाठी के साथ-साथ लैपटॉप (ट्विटर) भी थाम लिया है और पार्टी जमाने से सुर-ताल मिलाकर चल रही है।

राजद का खत्म हो गया जनाधार, लालू ने दुबारा पार्टी को समेटा

नीतीश कुमार से मिली हार के बाद राजद का जनाधार लगभग खत्म हो गया था। इसकी कई वजहें रहीं, लेकिन लालू ने हार नहीं मानी। उन्होंने हार की वजहें तलाशीं तो पता चला कि जनता का विश्वास टूट गया है। जनता का विश्वास पाना लालू के लिए जरूरी था और राजद अपना जनाधार बनाने में लगी रही।

धीरे-धीरे उसने अपने जो वोट थे उसे हासिल करने का पुख्ता प्लान बनाया और बिहार के ग्रामीण इलाकों में जाकर लोगोकी समस्याएं देखीं और लोगों का विश्वास जीता। इस बीच लालू के बेटे राजनीतिक विरासत संभालने लायक हो गए तो लालू ने दोनों को जनता के बीच धकेला।

लालू जनता की नब्ज जानते थे और पार्टी की मजबूती को आधार बनाकर महागठबंधन बनाया और लोगों का विश्वास दुबारा जीता और सबसे ज्यादा सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में राजद उभरी और राजद ने वापस अपना जनाधार वापस पा लिया।

महागठबंधन का मिला साथ, राजद का बढ़ा जनाधार

साल 2015 में महागठबंधन की सरकार बनी तो लालू के छोटे बेटे तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया तो वहीं बड़े बेटे तेजप्रताप को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। राजनीतिक कैरियर की शुरुआत से ही दोनों भाइयों के अलग-अलग अंदाज दिखने लगे थे।

तेजस्वी जहां ट्विटर और फेसबुक से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे और राजनीति के गूढ़ मंत्र सीख रहे थे तो वहीं तेजप्रताप अपने पिता की तरह देसी अंदाज में पटना के सरकारी अस्पतालों में खुद पहुंच जाते थे। कभी जमीन पर बैठकर फाइल निपटाते थे तो कभी जलेबी भी बनाने लगते थे।

महागठबंधन टूटने से भी नहीं बिखरा राजद

महागठबंधन टूटने के बाद दोनों भाईयों के बीच मनमुटाव की बातें भी आईं लेकिन लालू का हस्तक्षेप कहें या राबड़ी की समझ या तेजस्वी की चुप्पी, इन अफवाहों ने रंग नहीं पकड़ा और फिर बाद में विपक्ष को भी मुंह की खानी पड़ी। दोनों के स्वभाव भले ही अलग हों, सोच भले ही अलग हों लेकिन दोनों अपने पिता की विरासत को मजबूत बनाने में लगे हैं।

जिस तरह लालू जनमानस के बीच जाकर उनकी बातें सुनते थे आज उनके दोनों पुत्र भी लोगों से जुड़ने के लिए उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए अपने अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं। लालू के बड़े पुत्र तेजप्रताप यादव लालू के ही स्टाइल को फॉलो करते हैं तो छोटे बेटे तेजस्वी ने पार्टी की मजबूती और हाईटेक करने की बड़ी जिम्मेदारी संभाल ली है।

तेजप्रताप ने अपनाया लालू स्टाइल, राष्ट्रीय फलक पर छाए तेजस्वी

जहां तेजस्वी ने पीएम मोदी के मन की बात के तर्ज पर फेसबुक पर दिल की बात श्रृंखला शुरू की और जनता से सीधा संवाद किया तो लोगों को राजद की लाठी से लैपटॉप की धमक देखने को मिली। उसके साथ ही तेजप्रताप ने भी नरेंद्र मोदी के अभियान 'चाय पर चर्चा' की तर्ज पर 'सत्तू पार्टी विद तेज प्रताप' कार्यक्रम शुरू किया और लोगों के बीच गए। सड़क पर बैठकर प्याज-मिर्च से सत्तू खाया। यहां तक कि गर्मी लगी तो खुले में नहाने लगे।

तेजस्वी ने अपने समर्थकों के साथ बिहार के गांव-गांव की यात्रा की और लोगों से जुड़े, इतना ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई। बड़े-बड़े कार्यक्रमों का हिस्सा बने और बेबाक तरीके से अपनी बात रखी। अपने पिता लालू यादव के लिए कहा कि लालू एक व्यक्ति नहीं एक विज्ञान है। राजनीति के दिग्गजों ने भी तेजस्वी का लोहा माना है।

आज तेजस्वी अपनी समझ के हिसाब से अपनी पार्टी को एकजुट करने और उसे आगे ले जाने के लिए प्रयासरत हैं और यही वजह है कि पिता के जेल में रहते हुए भी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता उन्हें अपने लालू की तरह ही सम्मान देते हैं और अपना भावी नेता मानते हैं।

बात तेजप्रताप की करें तो वो भी तमाम विवादों के बाद आम लोगों से सीधे संवाद कर रहे हैं और 24 दिसंबर से पटना में पार्टी ऑफिस में जनता दरबार भी लगाना शुरू कर दिया। इस दौरान वो फरियादियों के लिए फुलवारी थानेदार से थाने के कैंपस में ही खुद जाकर भिड़ जाते हैं तो विरोधियों को सीधा जवाब देने में पिता की स्टाइल अपनाते हैं।

तेजस्वी और तेजप्रताप दोनों ही सोशल मीडिया पर भी एक्टिव हैं लेकिन तेजस्वी ने लालू की लाठी को लैपटॉप तक पहुंचाने का काम बखूबी किया है। उनके सोशल अकाउंट्स पर फॉलोअर्स ज्यादा हैं उनके बयान राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचते हैं और उनपर चर्चा होती है।

तेजस्वी यादव किसी भी मुद्दे पर अपनी राय रखने, प्रेस कॉन्फ्रेंस करने या जनता के बीच जाने से पहले सोशल मीडिया पर एक्टिव हो जाते हैं। तेजस्वी ने अब 17 जनवरी से ट्विटर पर भी अपनी चौपाल लगानी शुरू कर दी है और अपने स्टाइल में खटिया पर बैठकर लोगों के सवालों के जवाब देते हैं।

दोनों की राहें अलग, लेकिन मकसद एक

रैली-रैला से अलग तेजस्वी इस वर्चुअल दुनिया की चौपाल में ट्विटर पर सीधे लोगों से जुड़ रहे हैं और लोगों के सवाल के जवाब दे रहे हैं। उनके इस चौपाल से यूथ्स सबसे ज्यादा जुड़े हैं और हर तरह के सवाल कर रहे हैं। वहीं विपक्षी पार्टियां इसे देखकर तंज कसने में पीछे नहीं हट रहीं।

एक तरफ तेजस्वी की चौपाल तो वहीं लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव जमीन पर बैठकर जनता दरबार में लोगों से सीधी बातचीत कर रहे हैं और उनकी समस्या सुनकर उसका निवारण कर रहे हैं। इसके साथ ही तेजप्रताप जल्द ही अपनी बदलाव यात्रा पर भी निकलने वाले हैं।

एेसे में लालू के दोनों बेटों के ये दो बड़े कदम भले ही अलग-अलग लग रहे हैं, लेकिन यह तय है कि इनसे अलग-अलग वोट बैंक को साधने में मदद मिलेगी। सुदूर ग्रामीण इलाकों के इंटरनेट से दूर वोट बैंक को तेजप्रताप यादव की बदलाव यात्रा जोड़ेगी तो इंटरनेट फ्रेंडली वोटर तेजस्‍वी की चौपाल से जुड़ेंगे। लालू की लाठी भी है तो अब लैपटॉप की ताकत भी।

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