70 साल के बीमार सजा काट रहे लालू, आज भी बाजीगर हैं या जादूगर, जानिए
- In बिहार 22 Jan 2019 4:24 PM IST
चारा घोटाला मामले में सजा काट रहे अस्वस्थ लालू प्रसाद यादव रांची के रिम्स अस्पताल में भर्ती हैं। उन्हें कई तरह की बीमारियों ने घेर रखा है, चिकित्सक उनका इलाज कर रहे हैं। कभी-कभी उनकी परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है। लेकिन इसके बावजूद 70 साल के बीमार लालू अस्पताल से ही राजनीति के केंद्रबिंदु में शामिल हैं और ट्विटर के जरिए लोगों से जुड़़े हुए हैं।
महागठबंधन की रूपरेखा तय करने वाले लालू अस्पताल में भर्ती हैं लेकिन उनके महत्व को इसी से आंका जा रहा है कि उनसे मिलने महागठबंधन के बड़े-बड़े नेताओं को रिम्स जाना पड़ रहा है क्योंकि सीट शेयरिंग का पेंच लालू ही सुलझा सकते हैं।लालू अस्पताल से ही पार्टी पर भी नजर रखे हुए हैं और अपने बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप से मिलकर पार्टी और घर के बारे में जानकारी लेते रहते हैं।
सोमवार को लालू यादव ने ट्वीट के जरिए अपने विरोधियों पर निशाना साधा और शायराना अंदाज में लिखा है कि-अभी ग़नीमत है सब्र मेरा,
अभी लबालब भरा नहीं हूं
वह मुझको मुर्दा समझ रहा है
उसे कहो मैं मरा नहीं हूं
लालू का यह ट्वीट लोकसभा चुनाव के लिए अलग रूप में देखा जा सकता है। इस ट्वीट के जरिए लालू ने केंद्र सरकार पर तंज कसते हुए बड़ी बात कह दी है। लालू ने ये इशारा अपनी सजा और 2019 में होने वाले चुनाव को लेकर किया है। विरोधियों को भी पता है कि सजा काट रहे लालू चुनावों में अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं।
इससे पहले भी लालू ने साबित किया है जनता की नब्ज और पार्टी की मजबूती पर किस तरह से पकड़ बनाकर रखनी है। जेल जाते हुए लालू ने तुरत डिसीजन लिया था और उस वक्त अपनी पत्नी राबड़ी को किचन से निकालकर बिहार की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया था। उस वक्त भी वो जेल में थे लेकिन बिहार की सत्ता की चाबी खुद के पास रखते थे।
लालू यादव भारतीय राजनीति के उन चंद नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने कभी भी भाजपा से समझौता नहीं किया। देश के महत्वपूर्ण दल अलग-अलग समय में भाजपा के साथ गठबंधन बनाकर सरकार चला चुके हैं भाजपा को अपना समर्थन दे चुके हैं लेकिन लालू ने कभी भाजपा के सामने घुटने नहीं टेके ना ही कभी उसका समर्थन किया।
कई मामले में लालू अन्य नेताओं से अलग नज़र आते हैं, शायद यही वजह है कि लालू और उनकी पार्टी की छवि सेक्यूलर नेता और पार्टी के रूप में रही है और इस बात को बिहार की जनता भी जानती है कि इस मुद्दे पर लालू कभी किसी से समझौता नहीं कर सकते हैं।
लालू ने ही भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के राम रथ को बिहार में रोका था और उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद भी किया था। किसी और में इतनी हिम्मत नहीं हो सकती थी। इसके बाद बिहार में इससे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ी ही है।
चारा घोटाला, मिट्टी घोटाला, रेलवे टेंडर घोटाला, इत्यादि कई घोटालों में नाम आने के बाद लालू यादव और उनके परिवार की, उनकी पार्टी राजद की परेशानी बढ़ी है, लेकिन उसी अनुपात में जनता के बीच आज भी उनकी उतनी ही स्वीकार्यता है, राजद का अपना वोट बैंक है जिसे बिहार में नकारा नहीं जा सकता और ये विरोधियों को भी पता है कि लालू जेल में रहें या बाहर उनकी ताकत में कभी कमी नहीं आई है।
बात 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो उस वक्त देश में तथाकथित मोदी लहर चल रही थी और लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 में से 31 सीटें जीती थीं। एनडीए में लोजपा और रालोसपा शामिल थे और राजद ने कांग्रेस से गठबंधन कर चुनाव लड़ा था, वहीं नीतीश कुमार की पार्टी ने अकेले ही चुनाव लड़ा था।
इस चुनाव के बाद एनडीए को मिली जीत को देखकर विपक्ष एकजुट हुआ था और उसके एक साल बाद बिहार में हुए विधानसभा चुनाव के लिए लालू ने महागठबंधन की वकालत की और लालू-नीतीश की जोड़ी ने लोकसभा चुनाव की जीत से उत्साहित एनडीए को बिहार में चारों खाने चित कर दिया था।
लालू ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया और अपने पुत्रों तेजप्रताप और तेजस्वी को नीतीश की सरकार में अहम पद दिला दिया और दोनों को दिशानिर्देश भी देते रहे। इसके साथ ही लालू किंगमेकर बन गए और अपने बयानों के तीर से केंद्र की एनडीए सरकार को बेधते रहे।
अचानक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पलटी मारी और भाजपा से जाकर हाथ मिला लिया। रात भर में ही बिहार में राजनीतिक भूचाल आया और बिहार में सबसे ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करने वाली राजद को विपक्ष में बैठना पड़ा और एनडीए की सरकार बन गई।
इस साल लोकसभा चुनाव और फिर अगले साल विधानसभा का चुनाव होना है। एेसे में लालू का जेल से बाहर रहना जरूरी है। चुनावों में उनके भाषण की कला और जनमानस तक उनकी पहुंच ही उनकी ताकत है। अपनी भाषण की शैली और दूसरों की नकल कर जहां वो लोगों को हंसाकर लोट-पोट कर देते हैं वहीं अपने भाषण से बहुत कुछ संदेश भी लोगों तक पहुंचा देते हैं।
चारा घोटाला मामले में लालू को जेल हो गई, लेकिन अपनी पार्टी की चाभी लालू ने अपने ही पास रखी और अपने जमानत का इंतजार कर रहे हैं। चारा घोटाला मामले में न्यायालय ने उनकी जमानत अर्जी ठुकरा दी है।
लालू यादव की जमानत का महागठबंधन में शामिल दल भी इंतजार कर रहे हैं क्योंकि सीटों पर लालू की ही अंतिम मुहर लगनी है। कई मामलों में उन्हें जमानत मिलनी है और अगर उन्हें जमानत नहीं भी मिलती है तो भी वो राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं। भाजपा की धर्म की राजनीति को वे जाति की राजनीति से काट सकते हैं। तो क्या इस बार भी लालू जेल से किंगमेकर की भूमिका निभाएंगे, देखना होगा।