10 साल की बच्ची को 4 साल बाद पीठ के ट्यूमर से मिली मुक्ति, डॉ अनुज और शिक्षिकाओं की मेहनत लाई रंग

झारखंड के दूरस्थ गोईलकेरा की 10 साल की बच्ची की पीठ से 4 साल पुराना ट्यूमर शिक्षिकाओं और डॉक्टरों की मदद से हुई सफल सर्जरी में निकाला गया।

10 साल की बच्ची को 4 साल बाद पीठ के ट्यूमर से मिली मुक्ति, डॉ अनुज और शिक्षिकाओं की मेहनत लाई रंग
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झारखंड के गोईलकेरा जैसे दूरस्थ क्षेत्र में रहने वाली एक 10 साल की बच्ची की जिंदगी में एक नया सवेरा आया है। पिछले चार साल से उसकी पीठ पर डेढ़ किलो का ट्यूमर था, जिसका इलाज परिवार की आर्थिक तंगी और संसाधनों की कमी के कारण असंभव लग रहा था। लेकिन इस बच्ची की जिंदगी को बदलने में दो शिक्षिकाओं, सोनियमा जोजो और मुक्ति बोईपाई, और डॉ अनुज कुमार की अथक मेहनत ने चमत्कार कर दिखाया।

डॉ अनुज कुमार ने अपनी एक्स पोस्ट में इस प्रेरणादायक कहानी को साझा किया। उन्होंने बताया कि बच्ची की शिक्षिकाओं ने चार साल तक हर संभव कोशिश की। कई दरवाजे खटखटाए, लेकिन सफलता नहीं मिली। आखिरकार, उनके प्रयासों ने देवराज हेसा के जरिए डॉ अनुज तक यह मामला पहुंचाया।

आर्थिक तंगी के बावजूद जुटाए गए संसाधन
डॉ अनुज ने बच्ची के परिवार से बात की तो पता चला कि उनकी माली हालत इतनी खराब थी कि रांची पहुंचना भी मुश्किल था। फिर पंकज जी की मदद से संसाधन जुटाए गए। रांची के हेल्थ पॉइंट अस्पताल में डॉ शैलेष वर्मा, डॉ जतिन सेठी और डॉ ओ.पी. श्रीवास्तव की विशेषज्ञ टीम ने बच्ची की जटिल सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।

शिक्षिकाओं की जिद और डॉक्टरों की मेहनत
डॉ अनुज ने अपनी पोस्ट में शिक्षिकाओं की तारीफ करते हुए लिखा, "सबसे बड़ा श्रेय उन शिक्षिकाओं को जाता है, जिन्होंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी। कुछ लोग सच में बदलाव लाते हैं, चुपचाप।" सर्जरी के बाद बच्ची अब पूरी तरह स्वस्थ है और अपने घर लौट चुकी है।

सोशल मीडिया पर प्रेरणादायक कहानी की चर्चा
इस पोस्ट को सोशल मीडिया पर खूब सराहना मिल रही है। लोग डॉ अनुज कुमार, शिक्षिकाओं और डॉक्टरों की टीम को बधाई दे रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, "आप जैसे डॉक्टर भगवान का रूप हैं।" यह कहानी न केवल झारखंड के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल है कि दृढ़ निश्चय और सामूहिक प्रयास असंभव को भी संभव बना सकते हैं।

स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर सवाल
हालांकि, रांची कैंसर अस्पताल और झारखंड कैंसर सेंटर जैसे संस्थान कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज में बेहतर सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंच अभी भी एक चुनौती है। फिर भी इन सभी चुनौतियों के बाद भी गोईलकेरा की इस बच्ची की जिंदगी बदलने में शिक्षिकाओं, डॉक्टरों और सामाजिक सहयोग की ताकत ने एक नई मिसाल कायम की है।
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