पाक में चेहल्लुम के लिए सुरक्षा बढ़ी, मोबाइल, इंटरनेट सेवाएं कुछ दिनों के लिए बंद

पाकिस्तान में चेहल्लुम के दौरान कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए मंगलवार को मुख्य शहरों में सुरक्षा बढ़ा दी गई और मोबाइल तथा इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गईं. अधिकारियों ने बताया कि शिया मुस्लिम देश के विभिन्न हिस्सों में जुलूस निकालेंगे और सरकार ने उन मार्गों तथा स्थानों पर हजारों जवानों को तैनात किया है जहां शाम तक मार्च खत्म होगा. आधुनिक इराक के कर्बला में 680 ई. में पैगंबर के पोते इमाम हुसैन की शहादत की तिथि के 40वें दिन चेहल्लुम मनाया जाता है.
अधिकारियों ने बताया कि चेहल्लुम के मौके पर किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए सुरक्षा मजबूत कर दी गई है. चरमपंथी सुन्नी समूह ऐसे जुलूसों पर हमले करते रहे हैं.
अधिकारियों ने बताया कि गृह मंत्रालयों को सभी चारों प्रांतों के गृह विभागों से मोबाइल फोन तथा इंटरनेट सेवाएं निलंबित करने के लिए अर्जियां मिली थीं. स्थानीय टीवी की खबरों के अनुसार, लाहौर, कराची, पेशावर, क्वेटा, रावलपिंडी, मुजफ्फराबाद, मुल्तान जैसे बड़े शहरों में संचार सेवाएं पूरी तरह या आंशिक रूप से निलंबित हैं. सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि आतंकवादी अपनी गतिविधियों की योजना बनाने और उन्हें अंजाम देने के लिए आधुनिक संचार सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं.
इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का एक दिन चेहल्लुम है. चेहल्लुम मोहर्रम के चालीसवें पर इमाम हुसैन की शहादत को याद करने के लिए मनाया जाता है. करबला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन मानवता की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे. इस मातम के दिन में भी ताजिया जुलूस आदि निकलते हैं.इमाम हुसैन जब करबला के मैदान में थो तो उनके साथ मात्र 72 हकपरस्त यानी वफादार सैनिक थे वहीं दूसरी ओर यजीद की 22000 से भी अधिक लोगों की हथियारबंद सेना थी.
करबला की जंग समय के हिसाब से तो छोटी सी जंग थी लेकिन इस्लाम के इतिहास में करबला की लड़ाई सत्य और असत्य या अन्याय और न्याय के बीच की लड़ाई बनकर सामने आई. गिनती के चंद लोगों के साथ ईमान, सत्य और न्याय के लिए लड़ते हुए इमाम हजरत हुसैन इस दिन शहादत को प्राप्त हुए थे लेकिन उन्होंने दुनिया को एक नई रोशनी की राह जरूर दिखा दी थी.
करबला के मैदान में नवासा-ए-रसूल हजरत इमाम हुसैन ने अपने 72 हकपरस्त सैनिकों के काफिले के साथ दीन-ए-रसूल को बचाने के लिए अपनी और अपने घर के खानदान वालों के साथ कुर्बानी दी थी. करबला में ही इमाम हुसैन के साथ सभी सैनिक और छोटे-छोटे बच्चे भूख-प्यास आदि के कारण शहीद हो गये थे.
यजीदियों ने काफिले में मौजूद औरतों और महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया जिसके बाद उन पर जुल्मों और सितमों का दौर शुरु हुआ था और उनके टेंटों में आग लगा दी गई थी. हजरत-ए-जैनुल आब्दीन के दिन यजीदियों के कब्जे से निकले लोग करबला पहुँचे और शोहदा-ए-करबला की कब्र की जयारत यानी की दर्शन किये. उनके दर्शन करने का दिन इमाम हुसैन की शहादत का चेहल्लुम यानी चालीसवां दिन था. तभी से हजरत इमाम हुसैन की शहागत की याद में शादात के 40वें दिन चेहल्लुम मनाया जाता है