चीन के बराबर, पाकिस्तान से काफी आगे, जानें युद्ध में इसका कितना महत्व
- In विदेश 28 March 2019 11:42 AM IST
जानकारों की मानें तो 'मिशन शक्ति' भारत के लिए उतना ही सामरिक महत्व का है जितना कि वर्ष 1998 में किया गया परमाणु परीक्षण। बेहद सफल एंटी सैटेलाइट मिसाइल परीक्षण ने भारत को अमेरिका, रूस और चीन के ना सिर्फ समकक्ष खड़ा कर दिया है बल्कि पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंदी देश के मुकाबले काफी आगे ला दिया है।मजबूत हुआ भारत इस परीक्षण का यह भी मतलब है कि अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ समाप्त करने के लिए होने वाली अंतरराष्ट्रीय संधि में शामिल होने के लिए भारत को अब किसी के आगे गिड़गिड़ाना नहीं होगा। साथ ही अब दूसरे किसी भी दुश्मन देश को भारत को सैटेलाइट के जरिए नुकसान पहुंचाने से पहले काफी सोचना होगा।चीन के परीक्षण के बाद दवाब में था भारत सरकारी सूत्रों के मुताबिक, ''वर्ष 2007 में चीन की तरफ से पहली बार इस तरह की तकनीक के सफल परीक्षण के बाद से ही भारतीय वैज्ञानिकों पर इस क्षमता को हासिल करने का दबाव बढ़ गया था।
वर्ष 2013 में चीन ने दोबारा और बेहद शक्तिशाली परीक्षण करके भारतीय सामरिक विशेषज्ञों में और हलचल मचा दी थी। भारतीय थल सेना के तत्कालीन प्रमुख ने सार्वजनिक तौर पर अंतरिक्ष क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपलब्धियों पर गहरी चिंता जताई थी।''जानें क्यों जरूरी है सैटेलाइट मिसाइलेंभारत की चिंता इस बात की थी कि उसने लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों से जुड़ी तकनीक तो हासिल कर ली थी लेकिन दूसरे देशों की सैटेलाइट को नुकसान पहुंचाने की क्षमता हासिल नहीं कर पाया था। इस क्षमता का महत्व इसलिए है कि भविष्य में सैटेलाइट ही तय करेंगे कि कौन युद्ध जीतेगा और कौन हारेगा। इससे दुश्मन सैन्य तैयारियों, मिसाइलों की तैनाती की ही जानकारी नहीं मिलेगी बल्कि समूचा सैन्य संचार व्यवस्था भी इसी पर आधारित है। ऐसे में सैटेलाइट को नुकसान पहुंचा कर किसी भी देश की सारी तैयारियों पर पानी फेरा जा सकता है।चीन को देगा कड़ी टक्करक्या भारत अब चीन के बराबर पहुंच गया है? इस बारे में अंतरिक्ष युद्ध पर अध्ययन करने वाले रणनीतिक विशेषज्ञ हर्ष वासानी का कहना है कि, ''निश्चित तौर पर भारत की सैटेलाइट को नष्ट करने की क्षमता चीन के बराबर है।
चीन ने निश्चित तौर पर 800 किमोलीटर तक के सैटेलाइट को नष्ट किया है जबकि मिशन शक्ति के तहत 300 किलोमीटर दूर सैटेलाइट पर परीक्षण किया गया है लेकिन मेरे ख्याल से भारत अब कभी भी ज्यादा दूरी की क्षमता भी हासिल करने में सक्षम है।पड़ाेसी देश से आगे निकले हमसबसे बड़ी बात है यह है कि यह हमारे लिए एक रक्षा कवच के तौर पर काम करेगा क्योंकि दुश्मन देश को मालूम होगा कि अगर वह हमारे अंतरिक्ष यान या सैटेलाइट को नुकसान पहुंचाएंगे तो हम भी उन्हें उतना ही नुकसान पहुंचा देंगे।' भारत अंतरिक्ष विज्ञान में पहले से ही अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान से काफी आगे है और इस परीक्षण के बाद यह फासला और बढ़ गया है। वासानी का कहना है कि पाकिस्तान निश्चित तौर पर अब यह उपलब्धि हासिल करने की कोशिश करेगा और चीन से उसे मदद मिलेगी।
पाकिस्तान की मौजूदा मिसाइल क्षमता पूरी तरह से चीन की तकनीकी पर आधारित है।कूटनीतिक सर्किल पर भी पड़ा असरइस परीक्षण का भारत के कूटनीतिक सर्किल पर भी बड़ा असर पड़ने की बात कही जा रही है। खास तौर पर अंतरिक्ष को हथियारों की होड़ से बचाने के लिए भविष्य में जो अंतरराष्ट्रीय समझौता किया जाएगा, भारत उसका अब अहम हिस्सा होगा। वासानी कहते हैं कि ''हमने समय पर परमाणु परीक्षण नहीं किया इसका नतीजा यह हुआ कि हम एनपीटी में शामिल नहीं हो सके और अभी तक इसकी बंदिश महसूस करते हैं। लेकिन अभी बाहरी अंतरिक्ष को हथियारों की होड़ से बचाने के लिए एक समझौते (पारोस-प्रीवेंशन ऑफ एन आर्म रेस इन आउटर स्पेस) पर बात हो रही है।''महाशक्ति बनने की ओरइस बारे में डीआरडीओ के पूर्व महानिदेशक वी के सारस्वत बताते हैं कि, ''सिर्फ परोस ही नहीं बल्कि मिसाइल तकनीकी या भारी नरसंहार करने वाले हथियारों की रोक थाम से जुड़ी जो भी अंतरराष्ट्रीय समझौते होंगे उसमें शामिल होने की भारत की दावेदारी होगी। तकनीकी क्षमता होने के बाद भारत की पूछ बढ़ेगी।'' 'मिशन शक्ति' पर विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी प्रश्नोत्तर में भी कहा गया है कि, भारत बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों को रोकने संबंधी अंतरराष्ट्रीय कानून को तैयार करने में एक महत्वपूर्ण अंतरिक्ष महाशक्ति के तौर पर अपनी भूमिका निभाना चाहता है।