पार्किंसन जैसी गंभीर बीमारियों से आवाज खोने वाले लोगों की जुबां बनेगा यह वर्चुअल यंत्र
- In विदेश 27 April 2019 12:53 PM IST
वैज्ञानिकों ने एक ऐसा वर्चुअल वोकल ट्रैक्ट बनाया है जो दिमाग के संकेतों से स्वाभाविक आवाज पैदा कर सकता है। इसकी मदद से ऐसे लोग बोल सकेंगे जिन्होंने किसी कारणवश अपनी आवाज खो दी है। अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के न्यूरोसाइंटिस्ट ने ब्रेन-मशीन इंटरफेस नामक यह ट्रैक्ट तैयार किए हैं। इसकी मदद से लकवा या अन्य बीमारियों की वजह से अपनी आवाज खो देने वाले लोगों की आवाज वापस आ जाएगी।
स्ट्रोक, मस्तिष्क में गंभीर चोट लगने और पार्किंसन रोग, मल्टीपल स्केलेरोसिस, और एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (एएलएस) जैसे नसों से संबंधित रोगों में अक्सर बोलने की क्षमता चली जाती है। बोलने में गंभीर रूप से असमर्थ कुछ लोग सहायक उपकरणों की मदद से अक्षरों के माध्यम से अपने विचार व्यक्त कर पाते हैं, लेकिन यह तकनीक उतनी कारगर नहीं हैं। इससे आंखों और चेहरे की मांसपेशियों पर बहुत ज्यादा जोर पड़ता है। इसके अलावा इस तरह के उपकरणों की मदद से लिखना या बोलना बहुत ही परिश्रम वाला काम होता है। इसमें ज्यादा गलती होने की संभावना रहती है। इस तकनीक के माध्यम से मुश्किल से एक मिनट में आदमी दस शब्द ही बोल पाता है, जबकि सामान्य तौर पर एक मिनट में एक व्यक्ति 100 से लेकर 150 शब्द बोलता है।
इस तकनीक से व्यक्ति के मस्तिष्क के संकेतों से जो संश्लेषित आवाज निकलती है वह एकदम स्वाभाविक होती है। भविष्य में इस तकनीक के जरिए बोलने में असमर्थ व्यक्ति आसानी से और शुद्ध बोल सकता है। इस अध्ययन को नेचर पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। बताया गया कि इस वोकल ट्रैक्ट के माध्यम से भविष्य में मनुष्य न केवल धाराप्रवाह बोल सकेगा, बल्कि दिमाग के संकेतों के माध्यम से वह अपना मनपसंद गीत भी गा सकेगा। इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले गोपाला अनुमनचिपल्ली ने बताया कि मनुष्य के दिमाग में लगाए गए स्पीच सेंटर और साउंड में संबंध बनाना बहुत कठिन था। उन्होंने बताया कि स्पीच सेंटर दिमाग से मिलने वाले संकेतों को आगे भेजता था, जिसे डिकोड करके स्पीकर तक भेजना बड़ा काम था।
क्या है पार्किंसन
पार्किंसन दिमाग से जुड़ी बीमारी है, जिसमें शरीर के विभिन्न अंगों की गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। गौरतलब है कि दिमाग में न्यूरॉन कोशिकाएं डोपामीन नामक एक रासायनिक पदार्थ का निर्माण करती हैं। जब डोपामीन का स्तर गिरने लगता है, तो दिमाग शरीर के विभिन्न अंगों पर नियंत्रण रख पाने में असक्षम होता है।
अक्सर यह बीमारी उम्रदराज लोगों को होती है, लेकिन आजकल युवाओं में भी यह मर्ज देखने को मिल रहा है। आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में इस वक्त लगभग 70 लाख से 1 करोड़ लोग पार्किंसन बीमारी से प्रभावित हैं। इन आंकड़ों से संदेश मिलता है कि इस संख्या में और भी बढ़ोतरी होगी, खासतौर से एशिया महाद्वीप में। इसका कारण बुजुर्गों की संख्या का बढऩा और आयु में वृद्धि होना है।
पार्किंसन बीमारी को अक्सर डिप्रेशन या दिमागी रूप से ठीक न होने की स्थिति से जोड़ा जाता है, लेकिन इस संदर्भ में यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि इस बीमारी से पीडि़त रोगी मानसिक रूप से विकलांग नहीं होते है। उन्हें समाज से अलग नहीं देखना चाहिए। शुरुआती स्टेज पर डॉक्टर लक्षणों को मैनेज करने के लिए दवाओं का सहारा लेते है, लेकिन दवाओं के प्रभावी न होने और इनके साइड इफेक्ट के सामने आने पर अंत में डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (डीबीएस) थेरेपी काफी कारगर साबित हुई है।
लक्षण
शारीरिक गतिविधि में सुस्ती महसूस करना
शरीर को संतुलित करने में दिक्कत महसूस करना
शरीर को संतुलित करने में दिक्कत महसूस करना
हंसने और पलकें झपकाने में दिक्कत महसूस करना
बोलने की समस्या और लिखने में दिक्कत महसूस करना
हाथों, भुजाओं, पैरों, जबड़ों और मांसपेशियों में अकडऩ होना
रोग की पहचान
पार्किंसन की पहचान करना आसान नहीं है। इसके लिए कोई भी प्रयोगशाला परीक्षण (रक्त परीक्षण या ब्रेन स्कैन जैसे टेस्ट) नहीं होते। आमतौर पर डॉक्टर इसके लक्षण और रोगी की हालत देखकर ही इस रोग के बारे में बताते है। न्यूरोफिजीशियन अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर और रोगी के परिजनों से बात कर इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि व्यक्ति पार्किंसन से पीडि़त है या नहीं।
कारण
आम धारणा है कि पार्किंसन का मर्ज मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं (नर्व सेल्स) द्वारा पर्याप्त मात्रा में डोपामीन नामक ब्रेन केमिकल के उत्पन्न नहीं होने के कारण होता है। इस रोग के बढऩे पर मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले डोपामीन की मात्रा कम हो जाती है। इस कारण व्यक्ति अपनी शारीरिक गतिविधियों को सामान्य रूप से नियंत्रित करने में असमर्थ हो जाता है। इसके अलावा पार्किंसन बीमारी का कारण आनुवांशिक भी हो सकता है। इसी तरह पर्यावरण से संबंधित कारण, उम्र बढऩा और अस्वस्थ जीवनशैली भी इस रोग को बुलावा दे सकते हैं। महिलाओं की तुलना में पुरुषों में यह बीमारी कहीं ज्यादा होती है।
इलाज
पार्किंसन रोग का उपचार न्यूरो फिजीशियन करते हैं। इस रोग के विभिन्न लक्षणों के लिए विभिन्न प्रकार की दवाएं दी जाती हैं। कुछ समय के बाद रोगी पर किसी दवा का असर नहीं भी हो सकता है। दवा के इस्तेमाल से रोगी में जो लक्षण खत्म हो जाते हैं, वे धीरे- धीरे बढऩे लगते हैं। इस कारण कुछ रोगियों में दवा की खुराक में लगातार वृद्धि करनी पड़ सकती है।
गौरतलब है कि जिन रोगियों पर दवा का असर नहीं होता है या दवा का अधिक दुष्प्रभाव होता है, उनके लिए सर्जरी उपयुक्त है। पार्किंसन का इलाज करने के लिए डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (डीबीएस) सबसे मुख्य सर्जरी है। इस सर्जरी से शरीर की विविध गतिविधियों से संबंधित लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। डीबीएस के तहत मस्तिष्क में गहराई में इलेक्ट्रोड के साथ बहुत बारीक तारों को प्रत्यारोपित किया जाता है। इलेक्ट्रोड और तारों को सही जगह पर प्रत्यारोपित किया जा रहा है या नहीं, इसे सुनिश्चित करने के लिए मस्तिष्क की एमआरआई और न्यूरोफिजियोलॉजिकल मैपिंग की जाती है।