अमेरिका से दोतरफा मार खाने के बाद चीन की निगाह भारत पर टिकी, वजह ट्रेडवार है...
- In विदेश 10 May 2019 12:07 PM IST
अमेरिका ने चीन की मुश्किलों को दोतरफा बढ़ा दिया है। एक तरफ तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनालड ट्रंप ने चीन से होने वाले 200 अरब डॉलर के आयात पर शुल्क 10 फीसद से बढ़कर 25 फीसद करने का एलान कर दिया है। वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के फेडरल कम्युनिकेशन कमिशन (एफसीसी) ने चाइना मोबाइल की एंट्री को प्रतिबंधित कर दिया है। चाइना मोबाइल चीन की सरकारी दूरसंचार कंपनी है। एफसीसी के चेयरमैन अजीत पई का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और दोनों देशों के बीच ट्रेड वार से उभरे तनाव को देखते हुए गुरुवार को इसके खिलाफ मतदान किया गया। चीन अपने मोबाइल के माध्यम से अमेरिका की सुरक्षा को खतरे में डालने की कोशिश कर सकता है। इसके अलावा यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के भी हित में नहीं है।
चीन को एंट्री मिलने की सूरत में उसकी कंपनी को अमेरिकी टेलिफोन लाइंस का एक्सेस मिल जाता। इतना ही नहीं अमेरिका से जुड़ी ऑप्टीकल फाइबर केबल और कम्यूनिकेशन सेटेलाइट का भी इस्तेमाल करने का चीन के पास जरिया होता। इसके माध्यम से चीन न सिर्फ अमेरिका से जुड़ी खुफिया जानकारियां चुरा सकता था बल्कि भविष्य में अमेरिका के संवेदनशील ठिकानों के लिए खतरा बन सकता था। इसके अलावा चाइना मोबाइल को अमेरिका में एंटी बैन करने के बाद अब यूएस चीन की दो अन्य कंपनियों चाइना टेलकॉम और चाइना यूनिकॉन को पूर्व मे दी गई इजाजत पर दोबारा विचार करेगा।चीन के ऊपर यह दोतरफा मार उस वक्त पड़ी है जब गुरुवार को ट्रेड वार खत्म करने को लेकर चीन के प्रधानमंत्री लियु और और अमेरिका के शीर्ष व्यापार अधिकारी के बीच वार्ता बिना किसी नतीजे के खत्म हो गई। पहले से ही इस बात की आशंका थी कि इस बैठक में कुछ नहीं निकलने वाला है।
इसके पीछे दोनों देशों की तरफ से की जा रही बयानबाजी प्रमुख वजह रही है। फैसले के बाद चीन अपने हितों की रक्षा हर हाल में करेगा। इतना ही नहीं चीन की तरफ से यह भी साफ कर दिया गया है कि ट्रेड वार को लेकर चीन के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। चीन ने अमेरिका को जवाब देने की भी रणनीति तैयार कर रखी है।भारत की बात करें तो अमेरिका-चीन ट्रेड वार से आने वाले दिनों में निर्यात में कुछ फायदा होता तो दिख रहा है, लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर को देखते हुए भारत को नुकसान ज्यादा हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में इजाफा होने और डॉलर के मुकाबले अन्य मुद्राओं की कीमत में अस्थिरता होने का खामियाजा भारतीय अर्थव्यवस्था का उठाना पड़ सकता है। वहीं दूसरी संभावना ये भी है कि भारत के लिए चीन में 11 अरब डॉलर का नया बाजार भी बन सकता है।