झारखंड में पैतृक मैपिंग के बाद क्यों हटाए जा रहे हैं, चुनाव आयोग ने बताई वजह
मतदाता सूची की पैतृक मैपिंग में गैरहाजिर, मृत और डुप्लीकेट नामों का बड़े पैमाने पर पता चला, चुनाव अधिकारियों को सतर्क किया गया

झारखंड में चल रही SIR प्रक्रिया के दौरान मतदाता सूचियों में जो तस्वीर उभर कर आई है, वह थोड़ी थोड़ी सोच में भी डालने वाली है। पैतृक मैपिंग की प्रक्रिया में पता चला कि करीब बारह लाख नाम ऐसे हैं जो या तो गैरहाजिर हैं, या जिनके बारे में रिपोर्ट है कि उनका निधन हो चुका है, या फिर वे दो अलग सूचियों में दर्ज हो गए हैं। यह संख्या छोटी नहीं है और शायद यही वजह है कि मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के. रवि कुमार ने अधिकारियों के साथ इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा की.
उन्होंने बताया कि मौजूदा मतदाता सूची के मतदाताओं को पिछले विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर वाली सूची से मिलाने का काम लगभग पूरा हो चुका है। यह आंकड़ा एक करोड़ साठ लाख से अधिक का है, तो सोचा जा सकता है कि इस पूरी प्रक्रिया में कितने पेंच फंस सकते हैं. खुद रवि कुमार ने माना कि दूसरे राज्यों से आए लोगों के नामों की पुष्टि करना सबसे मुश्किल हो रहा है। खासकर वे लोग जो पिछली लिस्ट में तो थे लेकिन अब उनका पता बदल चुका है.
यही कारण है कि उन्होंने ईआरओ और उप निर्वाचन पदाधिकारियों से साफ कहा कि दूसरे राज्यों की सीईओ वेबसाइट्स और भारत निर्वाचन आयोग के पोर्टल का इस्तेमाल कर इन नामों की पूरी जांच की जाए। दो जगह दर्ज नाम हटाना जरूरी है, वरना चुनाव के समय अनचाही गड़बड़ियां होंगी।
बैठक में एक और दिलचस्प मुद्दा उठा. कई बीएलओ को पिछले एसआईआर की सूची से मतदाताओं का विवरण ढूंढ़ने में दिक्कत हो रही है। रवि कुमार ने साफ कहा कि ऐसे कम परफॉर्मेंस वाले बीएलओ को बैचवार ट्रेनिंग दी जाए। उन्हें यह भी बताना जरूरी है कि पैतृक मैपिंग भविष्य में उनके काम को आसान ही बनाएगी, मुश्किल नहीं।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई बीएलओ समस्या में फंसा हुआ महसूस करे तो जिला मुख्यालय का हेल्प डेस्क मैनेजर उसकी मदद के लिए मौजूद है। असल में यह पूरा काम सिर्फ नाम जोड़ने या हटाने का नहीं है, बल्कि यह समझने का भी है कि किसी मतदाता का असल रिकॉर्ड कहां मौजूद है।
पैतृक मैपिंग पूरी होने का एक सीधा फायदा भी बताया गया। एसआईआर के दौरान कम दस्तावेज लगाने पड़ेंगे. जितना ज्यादा यह काम अभी सटीक होगा, आगे की प्रक्रिया उतनी सहज हो जाएगी। रवि कुमार ने अधिकारियों को याद दिलाया कि किसी भी योग्य मतदाता का नाम सूची से छूटे नहीं, यह उनका प्राथमिक दायित्व है।
बैठक में संयुक्त मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी सुबोध कुमार, नोडल अधिकारी देव दास दत्ता और उप निर्वाचन पदाधिकारी धीरज कुमार ठाकुर शामिल थे, साथ ही सभी जिलों के ईआरओ और उप निर्वाचन अधिकारी भी मौजूद थे।
मतदाताओं की इतनी बड़ी संख्या में आए अंतर ने यह साफ कर दिया है कि चुनावी सूची को दुरुस्त रखना एक लगातार चलने वाली जिम्मेदारी है और झारखंड इस समय उसी स्थिति में खड़ा है, जहां हर नाम की सटीकता, राज्य में आगे होने वाले चुनावों की विश्वसनीयता तय करेगी।
