सावन में महिलाओं को रिझाएगा सौभाग्य और सुकून का प्रतीक लहरिया फैशन

सावन में महिलाओं को रिझाएगा सौभाग्य और सुकून का प्रतीक लहरिया फैशन
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सावन का महीना, रिमझिम बरसात और रोमांटिक मौसम। गीतकारों तथा शायरों ने रिमझिम फुहारों पर अनेक गीतों की रचना करके प्यार के विभिन्न रूपों को खूबसूरती दी है। हरियाली की चादर ओढ़े जहां धरती सजती है, वहीं सावन में महिलाओं के लिए लहरिये सज जाते हैं। भारतीय संस्कृति में लहरिये का बहुत महत्व है। ये सौभाग्य और सुकून का प्रतीक माने जाते हैं। मीरा ने भी अपने पदों में लहरिये का जिक्र किया है। सावन में पहने जाने वाले लहरिये में हरा रंग शुभ माना जाता है। इस हरे रंग को प्रकृति के उल्लास से भी जोड़ा गया है। इसी तरह राजस्थान के पंचरंग लहरिये का भी अपना महत्व रहा है। लहरिये के पांच रंगों को भारतीय दर्शन के अनुसार, मनुष्य की बनावट के पांच तत्वों से जोड़ा गया है।

लहरिये की बारीक-बारीक रंग-बिरंगी धारियों में शगुन तथा संस्कृति के वे सारे रंग होते हैं, जो भारतीय संस्कृति का अटूट हिस्सा हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि लहरिया हमेशा कच्चे रंग में रंगा जाता है।

सावन में जब महिला कच्चे रंग का लहरिया ओढ़कर जाती हैं और पानी बरसता है, तो उसका रंग यदि विवाहिता की मांग में उतरता है, तो उसे बेहद शुभ माना जाता है। हमारी संस्कृति में यह रिवाज है कि बहू-बेटियों की मान मनुहार के लिए उन्हें लहरिया लाकर दिया जाता है।

सावन के महीने में बहू-बेटियों की मनुहार खास अर्थ रखती है। यह अवसर यह भी दर्शाता है कि लहरिये की तरह सुहागनों के जीवन भी सदा उल्लास से भरे रहें। लहरिया महज एक लिबास ही नहीं है, बल्कि यह हिंदू-मुस्लिम रिश्तों की गहराई की इबादत भी लिखता है। क्योंकि लहरिया मुस्लिम रंगरेज तैयार करते हैं, जबकि इसे हिंदू महिलाएं पहनती हैं।

कुछ रंगरेज कहते हैं कि जिसकी चुटकी में दम हो वही अच्छा लहरिया रंग सकता है। राजस्थान के रेगिस्तान में बसे लोगों के मन में लहरिये को लेकर बहुत ही सृजनशील विचार आते हैं।

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