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सातों दिन-चौबीसों घंटे चल रहा यह भंडारा

सातों दिन-चौबीसों घंटे चल रहा यह भंडारा

शहर के होटल, ढाबे बंद हो सकते...Editor

शहर के होटल, ढाबे बंद हो सकते हैं, मगर भोजन करने वालों के लिए इस मंदिर का दरवाजा हमेशा खुला रहता है। आधी रात को भी कोई जा पहुंचे तो इस दर से भूखा नहीं लौट सकता। शहर के दौलतगंज स्थित जीण माता मंदिर में साल भर सातों दिन चौबीसों घंटे भंडारा खुला रहता है। गरीब ही नहीं बाहर से आने वाले भी यहां पर भोजन करने पहुंचते हैं। यह सिलसिला कोई 2-4 साल से नहीं बल्कि 28 साल से चल रहा है। इसके लिए मंदिर को मिलने वाले अनाज, सब्जी एवं दान का इस्तेमाल किया जाता है।

जीण माता मंदिर के पुजारी रामाधार गुरु ने जब सड़क पर लोगों को जूठन खाते देखा तो मन में ऐसे लोगों के लिए सेवा भाव जागृत हो उठा। वर्ष 1990 में शहर से सटे गांवों में जाकर अनाज, सब्जी मांगना शुरू किया। जिससे भंडारे (लंगर) की शुरुआत हुई। 10-20 लोगों को भोजन कराया जाने लगा। करीब 12 साल तक संघर्ष का दौर जारी रहा और पुजारी जी को गांव-गांव जाकर सामग्री जुटानी पड़ती। लेकिन इसके बाद तो यह भंडारा मानो अन्नपूर्णा का भंडारा बन गया। हर कोई आगे बढ़कर दान देने लगा। अब नया बाजार, दाल बाजार, लोहिया बाजार, दौलतगंज, सराफा बाजार सहित सभी क्षेत्रों के लोग दान करते हैं। मंदिर में प्रतिदिन करीब 100 लोग भोजन के लिए पहुंचते हैं।

हफ्ते में रविवार, शुक्रवार और विशेष त्योहार पर पूड़ी, सब्जी, खीर और सूखी सब्जी मिलती है। जबकि अन्य दिनों में दाल, रोटी, चावल और सूखी सब्जी होती है। लोग कभी भी पहुंचें, भोजन जरूर मिलता है। रामाधार गुरु के इस काम में उनका परिवार भी पूरा साथ देता है। पत्नी पूड़ियां बेलती हैं तो बेटे खाना परोसते हैं। एक बच्चा रोटी या पूड़ी बनाने का काम संभालता है।

इस प्रकार पूरा परिवार इस काम में जुटा रहता है। रामाधार गुरु बताते हैं कि जिस समय इलाके में कर्फ्यू लगा था, तब भी भंडारा चलाने की विशेष अनुमति प्रशासन से मिली थी। परिवार में खुशी आई हो या कोई गम, सिलसिला कभी थमा नहीं। क्योंकि लोग बड़ी उम्मीद से यहां आते हैं, इसलिए हम हमेशा लोगों के भोजन का इंतजाम करके रखते हैं। यहां तक कि खाना भी ज्यादा बनवाया जाता है, ताकि यदि कोई रात में आ जाए तो उसे भूखा नहीं लौटना पड़े।

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