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मालिनी अवस्थी ने बताई लोक गीत की बारीकी

मालिनी अवस्थी ने बताई लोक गीत की बारीकी

नईदुनिया के सहयोग से 'हैलो...Editor

नईदुनिया के सहयोग से 'हैलो हिंदुस्तान' द्वारा आयोजित इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल में प्रसिद्ध लोक गायिका मालिनी अवस्थी शामिल हुई। फेस्टिवल में पहुंचे लोगों से रूबरू होते हुए उन्होंने लोक संगीत की बारीकी बताई और साथ ही अपने जीवन की वह बात बताई जिससे वे लोक गीत के प्रति आकर्षित हुईं।

इससे पहले एक विशेष इंटरव्यू में मालिनी ने कहा- आजकल हर पुरानी चीज को आधुनिकता के नाम पर खारिज करने का फैशन सा चल पड़ा है। लोग पश्चिमी संगीत गाएं तो आधुनिक, और लोक संगीत गाएं तो दकियानूसी। मगर सोशल मीडिया और इंटरनेट ने इस गलतफहमी को दूर करने में अहम भूमिका निभाई है।

इसके जरिए लोगों को लोक संगीत की विविधता, रसिकता और आध्यात्मिकता का एहसास हो रहा है और एक बार फिर से ये आम आदमी में पैठ बनाने लगा है। मैं खुद भी शास्त्रीय संगीत सीखने के बावजूद लोक साहित्य की गहराई के चलते इस ओर खिंची चली आई। यूं तो मैं अब भी शास्त्रीय संगीत गा रही हूं। चुनिंदा फिल्मों में प्ले बैक भी कर रही हूं लेकिन मेरी पहचान लोक गायिका के रूप में ही बनी है।

दूर जाने पर पता चलती है महत्ता

मालिनी मानती हैं कि किसी चीज की महत्ता का एहसास उससे दूर जाने पर कहीं ज्यादा शिद्दत से होता है। ये बात लोक संगीत पर सौ फीसदी लागू होती है। इन दिनों मैं देखती हूं कि कई युवा कलाकार लोक संगीत की ओर अग्रसर हो रहे हैं जबकि एक दौर था लोग इसे दकियानूसी कहकर रिजेक्ट करने लगे थे। हमारे घर में दादी, नानी, बुआ, ताई अमूमन हर छोटे-बड़े त्योहारों पर ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के साथ लोकसंगीत गाती-बजाती थीं लेकिन आधुनिकता के नाम पर हम अपनी जड़ों से कटते गए। मगर अब एक बार फिर समय चक्र घूमा है और हम अपने मूल की ओर लौट रहे हैं।

लोक संगीत से चटक, युवा, सरस और सुंदर कुछ नहीं

दरअसल हमारे पुराने कलाकार इतने सरल, सहज और सादा तबीयत के थे कि बिना किसी दिखावे और तामझाम के वो सहजता से कार्यक्रम प्रस्तुत करते थे। क्योंकि ये सहजता ही लोक संगीत की खासियत रही है। हालांकि इससे चटक, युवा, सरस और सुंदर कुछ भी नहीं है। लेकिन मुझे लगता है कि इसकी मूल आत्मा से खिलवाड़ किए बिना वक्त के साथ इसके प्रस्तुतिकरण में बदलाव किए जाने जरूरी हैं। इस वजह से वो फूहड़ न दिखें, इस बात का खास खयाल रखा जाना चाहिए।

रियाज, रियाज और सिर्फ रियाज

जो नए कलाकार लोक गायकी या शास्त्रीय गायकी में कॅरियर बनाना चाहते हैं उन्हें मेरी एक ही सलाह है कि रियाज कभी बंद न करें। समय तय कर लें और उस वक्त हर हाल में रियाज ही करें। ये मत सोचें कि एक-दो दिन के गैप से क्या होगा? एक दिन देखते ही देखते दस दिनों में तब्दील हो जाएगा। और आप बहुत पीछे चले जाएंगे। इसलिए रियाज नियमित रूप से करें। अब तो सहजता से रिकॉर्डिंग की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं, तो आप आसानी से एक-एक दिन हो रही गायकी में बेहतरी को खुद ही आब्जर्व कर सकते हैं। अपनी बात करूं तो इतने दशकों बाद आज भी जब कभी मैं रियाज नहीं कर पाती हूं तो खुद में एक अधूरापन सा पाती हूं।

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