सागर :जनजातियों से 60 वर्षों तक वस्तुएं संग्रहित कर बनाया म्यूजियम

सागर :जनजातियों से 60 वर्षों तक वस्तुएं संग्रहित कर बनाया म्यूजियम
X
जब हम कुछ करने की शुरुआत करते हैं तो इसके परिणाम के बारे में पहले ही सोच लेते हैं, लेकिन कभी-कभी हमें इतने अच्छे परिणाम भी मिलते हैं, जिनके बारे में हमने कभी सोचा भी न था। डॉ. हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के मानव शास्त्र विभाग को भी छोटे-छोटे प्रयासों के दम पर कुछ इसी तरह के सकारात्मक परिणाम मिले हैं। एंथ्रोपोलॉजी डिपार्टमेंट में देश के 25 से अधिक राज्यों में बसने वाली विभिन्ना जनजातियों से जुड़ी वस्तुओं का एक अनोखा संग्रहालय तैयार हो गया है।

इस म्यूजियम की खासियत यह है कि इसे तैयार करने में किसी भी प्रकार का भारी-भरकम बजट खर्च नहीं किया गया है। 6 दशक पहले डिपार्टमेंट के विद्यार्थियों ने जनजातियों पर होने वाले स्टडी टूर के दौरान एक-एक वस्तु का संग्रह करना शुरू किया। अब इस अनोखे म्यूजियम में देश की विभिन्ना जनजातियों से जुड़ी परम्पराओं, मान्यताओं व संस्कृतियों की जानकारी और उनसे जुड़े करीब 6 हजार से अधिक फोटोग्राफ मौजूद हैं।

इन मुख्य जनजातियों पर किया अध्ययन

अंडमान-निकोबार में बसने वाली 'जारवां", द ग्रेट अंडमानी जनजाति, लक्षद्वीप के मिनिकॉय द्वीप पर बसने वाली 'रावेरी" जनजाति, तामिलनाडु की नीलगिरी हिल्स पर रहने वाली 'तोड़ा" जनजाति, उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर में रहने वाली 'थारू" और ऋषिकेश में रहने वाली 'भोकसा" जनजाति, मणिपुर के वेस्ट इंफाल में बसने वाली 'रोमई नागा" जनजाति, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में बसने वाली 'गट्टी" जनजाति, पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में बसने वाली 'मुण्डा, लोधा, संथाल" जनजाति, छत्तीसगढ़ के कोरबा में बसने वाली 'चेरमा, उरांव, पाण्डु, कोणाकू" और बस्तर अबूझमाड़ में बसने वाली मोरिया, मारिया जनजाति, राजस्थान के उदयपुर में बसने वाली 'भील गमेती"जनजाति और मप्र के छिंदवाड़ा जिले में बसने वाली 'मवासी" जनजाति से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां संग्रहालय में मौजूद हैं।

देश में आज भी है महिला प्रधान समाज

देश में एक ओर जहां महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने के प्रयास किए जा रहे हैं। तो वहीं देश में एक ऐसा समाज है, जो महिला प्रधान है। लक्षद्वीप के मिनिकॉय द्वीप पर रहने वाली 'रावेरी" जनजाति में शादी के समय महिलाएं बारात लेकर जाती हैं और शादी के बाद पुरुष महिला के घर जाकर रहते हैं। इस जनजाति पर अध्ययन करने वाले मानव शास्त्र विभाग के शिक्षक भगत सिंह बताते हैं कि वहां पुरुष ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते हैं। महिलाएं पुरुषों से ज्यादा पढ़ी-लिखी होती हैं। पुरुष शिपो में जाकर काम करते हैं और महिलाएं ही घर की सारी बागडोर संभालती हैं। इस वजह से वहां आजादी के बाद से अब तक एक भी अपराध दर्ज नहीं हुआ है।

संग्रहालय बना स्टडी और शोध का साधन

मानवशास्त्र विभाग के इस संग्रहालय में देश भर की जनजातियों से जुड़ी हुई वस्तुएं हैं। उनके घरों की डिजाइन, दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाली वस्तुएं, उनके आभूषण और उनके वस्त्र मौजूद हैं। मानवशास्त्र विभाग के छात्र अब इन वस्तुओं पर शोध और अध्ययन कर रहे हैं। इसके साथ ही अन्य जगहों से भी लोग जनजातियों पर शोध और उनसे जुड़ी जानकारी प्राप्त करने के लिए विवि के मानवशास्त्र विभाग आते हैं। यह संग्रहालय शोध और स्टडी का महत्वपूर्ण साधन बन गया है। संग्रहालय का रखरखाव प्रयोगशाला तकनीशियन राजबहादुर के जिम्मे है।

मैं 20 वर्ष से कर रहा संकलन

मैं 1999 से अब तक स्टडी टूर के दौरान देश की विभिन्ना जनजातियों से जुड़ी वस्तुओं और फोटोग्राफ के संकलन का कार्य कर रहा हूं। 20 साल पहले जब मैं डिपार्टमेंट में आया था, तब जनजातियों से जुड़े जो फोटोग्राफ डिपार्टमेंट में मौजूद थे, उन्हें व्यवस्थित करने का काम भी मैंने किया है। डिपार्टमेंट में विभिन्ना जनजातियों के करीब 6 हजार से अधिक फोटोग्राफ्स का संग्रह है। यह संग्रह आगे भी निरंतर जारी रहेगा।

- भगत सिंह, तकनीकी सहायक, मानवशास्त्र विभाग

1956 से किया जा रहा संकलन

मानवशास्त्र विभाग में जनजातियों से जुड़ी वस्तुओं को संग्रहित करने का कार्य तो 1956 से किया जा रहा है। स्टडी टूर के दौरान डिपार्टमेंट के शिक्षकों और विद्यार्थियों की मेहनत से ही यह अनोखा संग्रहालय तैयार हो पाया है। देश भर के छात्रों के लिए जनजाति से जुड़े शोध और रिसर्च वर्क के लिए यह संग्रहालय हमेशा खुला है।
Tags:
Next Story
Share it