विश्व हिंदू परिषद की ओर से प्रयागराज में आयोजित धर्म संसद का अखाड़ा परिषद ने बहिष्कार
- In देश 31 Jan 2019 11:34 AM IST
विश्व हिंदू परिषद (VHP) की ओर से प्रयागराज में आयोजित धर्म संसद का अखाड़ा परिषद ने बहिष्कार किया है. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी ने कहा है कि विहिप की धर्म संसद में कोई भी अखाड़ा परिषद का सदस्य शामिल नहीं होगा. उन्होंने कहा कि विहिप इस धर्म संसद को राजनीतिक रंग दे रहा है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने राम मंदिर निर्माण के लिए साढ़े चार साल तक कुछ नहीं किया. उन्हें जवाब देना होगा कि आखिर इतने समय में राम मंदिर का निर्माण क्यों नहीं हो सका.
महंत नरेन्द्र गिरी ने कहा कि हम अलग से साधु संतों की बैठक करेंगे और 4 मार्च के बाद नागा साधुओं के साथ अयोध्या कूच करेंगे. निर्मोही और निर्वाणी अणि अखाड़ा की ज़मीन है तो विहिप बीच में क्यों कूद रहा है.
स्वामी स्वरूपानंद ने अयोध्या के लिए प्रस्थान करने का धर्मादेश दिया
कुम्भ मेला में 28, 29 और 30 जनवरी को चले धर्म संसद के अंतिम दिन ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की ओर से पारित परम धर्मादेश में हिंदू समाज से बसंत पंचमी के बाद प्रयागराज से अयोध्या के लिए प्रस्थान करने का आह्वान किया है. धर्मसंसद के समापन के बाद जारी धर्मादेश में कहा गया है, 'सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रथम चरण में हिंदुओं की मनोकामना की पूर्ति के लिए यजुर्वेद, कृष्ण यजुर्वेद तथा शतपथ ब्राह्मण में बताए गए इष्टिका न्यास विधि सम्मत कराने के लिए 21 फरवरी, 2019 का शुभ मुहूर्त निकाला गया है.'
धर्मादेश के मुताबिक, 'इसके लिए यदि हमें गोली भी खानी पड़ी या जेल भी जाना पड़े तो उसके लिए हम तैयार हैं. यदि हमारे इस कार्य में सत्ता के तीन अंगों में से किसी के द्वारा अवरोध डाला गया तो ऐसी स्थिति में संपूर्ण हिंदू जनता को यह धर्मादेश जारी करते हैं कि जब तक श्री रामजन्मभूमि विवाद का निर्णय नहीं हो जाता अथवा हमें राम जन्मभूमि प्राप्त नहीं हो जाती, तब तक प्रत्येक हिंदू का यह कर्तव्य होगा कि चार इष्टिकाओं को अयोध्या ले जाकर वेदोक्त इष्टिका न्यास पूजन करें.'
धर्मादेश में कहा गया है, 'न्यायपालिका की शीघ्र निर्णय की अपेक्षा धूमिल होते देख हमने विधायिका से अपेक्षा की और 27 नवंबर, 2018 को परम धर्मादेश जारी करते हुए भारत सरकार एवं भारत की संसद से अनुरोध किया था कि वे संविधान के अनुच्छेद 133 एवं 137 में अनुच्छेद 226 (3) के अनुसार एक नई कंडिका को संविधान संशोधन के माध्यम से प्रविष्ट कर उच्चतम न्यायालय को चार सप्ताह में राम जन्मभूमि विवाद के निस्तारण के लिए बाध्य करे.'
उन्होंने कहा, 'लेकिन बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि संसद में पूर्ण बहुमत वाली सरकार ने राम जन्मभूमि के संबंध में कुछ भी करने से इनकार कर दिया. वहीं दूसरी ओर, इस सरकार ने दो दिन में ही संसद के दोनों सदनों में आरक्षण संबंधित विधेयक पारित करवाकर अपने प्रचंड बहुमत का प्रदर्शन किया था.'