सबरीमाला: 28 साल पुरानी फोटो बनी सबूत, महिलाओं के लिए खुले मंदिर के दरवाजे
- In देश 29 Sept 2018 11:56 AM IST
उच्चतम न्यायालय ने सबरीमाला मंदिर में 10-50 साल की महिलाओं के जाने पर लगी रोक को हटा दिया है। शुक्रवार को दिए अपने फैसले में अदालत ने कहा कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश से रोकना लैंगिक आधार पर भेदभाव है और यह प्रथा हिंदू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है। उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय बेंच ने महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक हटा दी। जहां चार जजों का एक फैसला था वहीं जस्टिस इंदु मल्होत्रा का फैसला बहुमत से अलग था।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि धर्म मूलत: जीवन शैली है जो जिंदगी को ईश्वर से मिलाती है। भक्ति में भेदभाव नहीं किया जा सकता है और पितृसत्तात्मक धारणा को आस्था में समानता के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा था कि भगवान अय्यप्पा को मानने वाले किसी दूसरे संप्रदाय या धर्म के नहीं हैं।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक तस्वीर का भी जिक्र किया गया था। यह तस्वीर 28 साल पुरानी है। अगस्त 1990 में त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड की महिला कार्यकारी अधिकारी चंद्रिका अपनी 22 साल की बेटी के साथ मंदिर आई थीं। यहां अधिकारी की पोती का अन्नप्राशन (बच्चे को पहली बार अन्न खिलाना) कार्यकम हुआ। इस तस्वीर को एक फ्रीलांस फोटोग्राफर एपी जॉय ने अपने कैमरे में कैद कर लिया था।
इस घटना को याद करते हुए कैलिफोर्निया में रहने वाले जॉय ने बताया कि वह दर्शन करने के लिए सबरीमाला मंदिर पहुंचे थे। उनके अनुसार महिला अधिकारी को उस समय परेशानी का अहसास हो गया जब उन्होंने मुझे तस्वीर खींचते हुए देखा। उन्होंने मुझसे विनती की कि मेरे लिए मुसीबत खड़ी ना करें। जॉय ने कहा, 'वह चाहती थीं कि किसी भी कीमत पर यह तस्वीर अखबार के पास ना जाए। मैंने उन्हें कहा कि यह असंभव है। उन्होंने इसके बारे में तत्कालीन टीडीबी अध्यक्ष रमन भत्ताथिरीपड्ड को भी सूचना दे दी थी।'
जॉय ने आरोप लगाते हुए बताया, 'एक शख्स मेरे पंपा स्थित गेस्ट रूम के कमरे में आया और मुझे 50,000 रुपये देने की पेशकश की। 'मैंने उस राशि को लेने से मना कर दिया और तस्वीर को 15 अखबारों के पास भेज दिया। सभी ने इसे छापा और एक पाठक ने इस तस्वीर के आधार पर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।'