केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से SC/ST एक्ट पर कहा- 'तुरंत गिरफ्तारी जरूरी, अभी भी हो रही भेदभाव की घटनाएं'
- In देश 28 Oct 2018 11:35 AM IST
SC/ST संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर दिया है. केंद्र सरकार ने SC/ST एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान जोड़ने के फैसले का बचाव किया है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि अब भी भेदभाव की घटनाएं हो रही हैं और अनुसूचति जाति/जनजाति के लोगों को अधिकारों से वंचित किया जाता है, ऐसे में SC/ST के दुरुपयोग के चलते कानून रद्द कर देना गलत है. केंद्र सरकार ये भी कहा कि कानून में बदलाव का मकसद राजनीतिक लाभ नहीं है. 20 नंवबर को मामले पर सुनवाई होनी है.
केंद्र को नोटिस जारी कर 6 हफ्ते मेें जवाब मांगा था
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर 6 हफ्ते मेें जवाब मांगा था. याचिकाकर्ता ने कानून के अमल पर रोक लगाने की मांग की थी, जिसपर कोर्ट ने कहा था कि सरकार का पक्ष सुने बिना कानून के अमल पर रोक नहीं लगाई जा सकती. आपको बता दें कि दो वकील प्रिया शर्मा, पृथ्वीराज चौहान और एक NGO ने जनहित याचिका दायर की है. याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के केंद्र सरकार के एससी-एसटी संशोधन कानून 2018 को चुनौती दी गई है. साथ ही याचिका में एससी-एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक को बहाल करने की मांग की गई है.
सरकार का नया कानून असंवैधानिक है- याचिका
याचिका में कहा गया है कि सरकार का नया कानून असंवैधानिक है, क्योंकि सरकार ने सेक्शन 18ए के जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाया है जोकि गलत है और सरकार के इस नए कानून आने से अब बेगुनाह लोगों को फिर से फंसाया जाएगा. याचिका में ये भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार के नए कानून को असंवैधानिक करार दे और जब तक ये याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित रहे, तब तक कोर्ट नए कानून के अमल पर रोक लगाए. आपको बता दें कि राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी करने वाले एससी/एसटी संशोधन कानून 2018 को मंजूरी दी थी. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद एससी/एसटी कानून पूर्व की तरह सख्त प्रावधानों से लैस हो गया है.
ये है सरकार का संशोधन कानून
दरअसल, राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद संशोधन कानून प्रभावी हो गया है. इस संशोधन कानून के जरिये एससी/एसटी अत्याचार निरोधक कानून में धारा 18ए जोड़ी गई है जो कहती है कि इस कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है और न ही जांच अधिकारी को गिरफ्तारी करने से पहले किसी से इजाजत लेने की जरूरत है. संशोधित कानून में ये भी कहा गया है कि इस कानून के तहत अपराध करने वाले आरोपी को अग्रिम जमानत के प्रावधान (सीआरपीसी धारा 438) का लाभ नहीं मिलेगा. यानि अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी. संशोधित कानून में साफ कहा गया है कि इस कानून के उल्लंघन पर कानून में दी गई प्रक्रिया का ही पालन होगा.
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को दिए गए फैसले में एससी/एसटी कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए दिशानिर्देश जारी किए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी/एसटी अत्याचार निरोधक कानून में शिकायत मिलने के बाद तुरंत मामला दर्ज नहीं होगा. डीएसपी पहले शिकायत की प्रारंभिक जांच करके पता लगाएगा कि मामला झूठा या दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं है. इसके अलावा इस कानून में एफआईआर दर्ज होने के बाद अभियुक्त को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाएगा. सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी और सामान्य व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले एसएसपी की मंजूरीली जाएगी. इतना ही नहीं कोर्ट ने अभियुक्त की अग्रिम जमानत का भी रास्ता खोल दिया था. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देशव्यापी विरोध हुआ था. जिसके बाद सरकार ने कानून को पूर्ववत रूप में लाने के लिए एससी/एसटी संशोधन बिल संसद में पेश किया था और दोनों सदनों से बिल पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था.