इंदिरा गांधी के इस एक कदम से जब बौखला गए थे अमेरिका समेत सभी विकसित देश
- In राजनीति 18 May 2019 5:37 PM IST
अमेरिका और दुनिया के बड़े देश 18 मई 1974 के उस दिन को कभी नहीं भूल सकते जब भारत ने राजस्थान के पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था। इस ऑपरेशन का नाम रखा गया था- स्माइलिंग बुद्धा। इस परीक्षण से दुनिया इतनी चकित रह गई थी कि किसी को यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। लिहाजा आनन-फानन में कुछ देशों ने मिलकर एनएसजी की शुरुआत की। इसका मकसद परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना था। बहरहाल, भारत ने अपने पहले परमाणु परीक्षण के साथ यह साफ कर दिया था कि यह परीक्षण पूरी तरह से शांति के लिए था। यह परीक्षण भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाने की तरफ पहला कदम था। भारत ने जिस वक्त यह परीक्षण किया था, उस वक्त अमेरिका, वियतनाम युद्ध में उलझा हुआ था।
लिहाजा भारत के परमाणु परीक्षण की तरफ उसका ध्यान उस वक्त गया, जब भारत ने खुद को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित किया। अमेरिका के लिए इससे भी बड़ी चिंता की बात यह थी कि आखिर उसकी खुफिया एजेंसियों और सैटेलाइट को इसकी भनक कैसे नहीं लगी? वह वियतनाम युद्ध के बीच हुए इस परीक्षण को लेकर तिलमिलाया हुआ था। इस परीक्षण का नतीजा था कि अमेरिका ने भारत पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इन सभी को एक चुनौती के तौर पर स्वीकार किया था।
बुद्ध पूर्णिमा के दिन हुआ था पहला पोखरण परीक्षण
हालांकि, गोपनीय तरीके से पोखरण में किए गए पहले परमाणु परीक्षण के लिए रखे गए इस नाम की अलग वजह है। पहला कारण तो यह कि जिस दिन यह परीक्षण किया गया उस दिन बुद्ध पूर्णिमा थी और दूसरी वजह ये कि भारत इस परीक्षण के जरिए दुनिया में शांति का संदेश देना चाहता था।
18 मई को जो परीक्षण पोखरण में हुआ, उसकी नींव इंदिरा गांधी ने सात वर्ष पूर्व रखी थी। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के तत्कालीन अध्यक्ष राजा रमन्ना ने इस पूरे टेस्ट की कमान संभाली थी। उस वक्त उनके साथ भारत के मिसाइल प्रोग्राम के जनक डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम भी थे। कलाम ने पोखरण-2 के समय पूरे मिशन की कमान संभाली थी। पहले परीक्षण के लिए के लिए जो कोड वर्ड तय किया गया था वो था 'बुद्धा इज स्माइलिंग'। इस टॉप सीक्रेट प्रोजेक्ट पर लंबे समय से एक पूरी टीम काम कर रही थी। 75 वैज्ञानिक और इंजीनियरों की टीम ने 1967 से लेकर 1974 तक 7 साल जमकर मेहनत की। इस सफल टेस्ट के बाद इंदिरा गांधी उस जगह पर भी गईं, जहां यह टेस्ट किया गया था।
पहले पोखरण परीक्षण के बाद लगे कई प्रतिबंध
इसके बाद वर्ष 1972 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर का दौरा करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वहां के वैज्ञानिकों को परमाणु परीक्षण के लिए संयंत्र बनाने की मौखिक इजाज़त दी थी। परीक्षण के दिन से पहले तक इस पूरे ऑपरेशन को गोपनीय रखा गया था। परीक्षण के चलते जब अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगाए थे, तब हमारा साथ सोवियत रूस ने दिया था। जिस वक्त यह परीक्षण किया गया उस वक्त अमेरिका की कमान राष्ट्रपति निक्सन के हाथों में थी।
इस परीक्षण के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा अभिलेखागार ने एक बयान में कहा कि 18 मई 1974 को भारत का शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट जब हुआ तो अमेरिका इससे चकित रह गया, क्योंकि अमेरिकी खुफिया समुदाय को कहीं से भी इस बात का गुमान नहीं था कि परमाणु परीक्षण की तैयारियां चल रही हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा अभिलेखागार एनएसए और परमाणु अप्रसार अंतरराष्ट्रीय इतिहास परियोजना द्वारा हाल में सार्वजनिक किए गए खुफिया समुदाय कार्यालय के दस्तावेजों के अनुसार, निक्सन प्रशासन के नीति निर्माताओं ने भारत के परमाणु कार्यक्रम को अपनी प्राथमिकता में काफी नीचे रखा था और इस बात का निर्धारण करने में उसे कोई जल्दबाजी नहीं थी कि नई दिल्ली परमाणु हथियार का परीक्षण कर सकता है। विश्लेषकों ने अपने निष्कर्ष में कहा है कि परीक्षण से 20 माह पहले इस विषय पर खुफिया विश्लेषण और रिपोर्ट मिलनी बंद हो गई थी।
एनएसए के अनुसार, हालांकि परीक्षण से दो साल पहले 1972 की शुरुआत में ब्यूरो ऑफ इंटेलीजेंस एंड रिसर्च के विदेश विभाग ने इस बात की भविष्यवाणी की थी कि भारत एक ऐसे भूमिगत परीक्षण की तैयारियां कर सकता है, जिसके बारे में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को भनक भी नहीं मिल पाएगी। पहली बार प्रकाशित हुई आईएनआर की रिपोर्ट में चेतावनी दी गयी थी कि अमेरिकी सरकार ने इस मुद्दे को 'तुलनात्मक रूप से कम प्राथमिकता' की सूची में रखा था, जिसका अर्थ है कि ऐसी तैयारियों को अगर भारत छिपाने का प्रयास करता तो वह इसमें आसानी से सफल हो सकता था।