बचपन से ही बेखौफ और नेतागिरी में रहीं हैं स्मृति,
- In राजनीति 21 Jun 2019 11:54 AM IST
दिल्ली के आरके पुरम स्थित लिटिल फ्लॉवर स्कूल के पास एक सरकारी गाड़ी रुकती है तो चौकीदार आगे बढ़कर झांकता है कि कौन साहब आए हैं। देखता है मैडम उतरती हैं और चौकीदार एक झटके में पहचान लेता है कि यह तो स्कूल की वही पुरानी छात्रा है जो नेतागिरी किया करती थी। स्कूल के रिक्शेवाले से कहती थी कि पहले बाकी दोस्तों को उनके घर छोड़ो फिर आखिर में मुझे अपने घर पहुंचाओ। चौकीदार चहक उठता है और कहता है- वाह, सरकारी नौकरी मिल गई..और ड्राइवर भी...। मैडम कहती हैं- हां नौकरी मिल गई। बाद में चौकीदार को पता चलता है कि उसके स्कूल की पुरानी छात्रा अब सरकार में है, मंत्री बन गई है। जो तब स्मृति मल्होत्रा के रूप में जानी जाती थीं, अब स्मृति ईरानी के रूप में सामने हैं।
बचपन से ही बेखौफ रही हैं स्मृति
स्मृति बचपन से ही दबंग और बेखौफ रही हैं। जो कभी किसी भी सहपाठी या लड़की से छेड़खानी करने वाले लड़कों को सबक सिखाने जाती थी उसके हाथ में अब पूरे देश की महिला और बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी आ गई है। दरअसल स्मृति ईरानी का जीवन संघर्ष, लगातार आगे बढ़ने की जीवंत इच्छा, हर पहलू को समझने की कला और बेखौफ होकर अपनी शर्तों पर जीने का नाम है।
लोकसभा चुनाव में अमेठी में पहली भिडंत में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की जमीन हिलाने वाली और दूसरी भिडंत में सीट छीन लेने वाली स्मृति का जज्बा शुरुआत से ही ऐसा रहा है। कपड़े और तरह-तरह के सामान के लिए जाने-जाने वाले दिल्ली के जनपथ मार्केट में कभी 200 रुपये रोज की दिहाड़ी पर ब्यूटी प्रोडक्ट बेचने वाली सेल्स गर्ल स्मृति आज इससे कुछ फर्लांग दूर उद्योग भवन में बैठी कपड़ा मंत्री का कामकाज देख रही है। चुनौती भरा कठिन लक्ष्य तय करना और उसे हासिल करना उनकी खासियत है।
स्मृति ने किया साबित कोई भी मंजिल असंभव नहीं
अमेठी का चुनाव जीतने के बाद उन्होंने दुष्यंत का शेर ट्वीट किया था, 'कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता'। स्मृति ने साबित किया है कि कोई भी मंजिल असंभव नहीं। टीवी सीरियल में तुलसी के रूप में लोकप्रिय होने से पहले वह मुंबई में मैक्डोनाल्ड में काम करती थीं और वेतन 1800 रुपये महीने था। माडलिंग और एक्टिंग में रही स्मृति ने अपने प्रोफेशनल करियर में भी सिद्धांत कायम रखे। वह कभी पार्टी में नहीं गईं। उन्होंने साबित किया कि फिल्म इंडस्ट्री में भी सिद्धांतों के साथ काम किया जा सकता है। मिस इंडिया में भी वे हिस्सा ले चुकी हैं।
काफी संघर्ष भरी रही है स्मृति की जिंदगी
आरके पुरम के एक छोटे से घर से निकली स्मृति का जीवन कठिन था। डिफेंस कालोनी के सामने रिफ्यूजी कालोनी में स्मृति के पड़ोसी रहे पुराने दोस्त और फिलहाल अपोलो में काम कर रहे डॉ. यश गुलाटी और मजेदार वाकया बताते है- कहते हैं जब स्मृति के पिता ने शादी करने की सोची तो उनके पास पैसे नहीं थे। उस वक्त गुलाटी के बहनोई ने ही 150 रुपये उधार दिए थे और फिर शादी हुई थी। स्मृति की वह एक खूबी बताते हैं- स्मृति साफगोई से बात करती हैं, सच को सच और झूठ को झूठ बोलने का साहस रखती हैं। वह अच्छी इंसान और सच्ची दोस्त हैं।
स्मृति ने कभी परिस्थितियों को बंधन नही माना बल्कि उन्हें संबल मानते हुए आगे बढ़ीं। राजनीति की पट्टी उन्होंने बचपन में अपने नाना निर्मल चंद्र बख्शी से पढ़ी जो आरएसएस से जुड़े थे और दिल्ली में जहां आज विश्र्व हिंदू परिषद का दफ्तर है, वहां शाखा लगाया करते थे। इस वातावरण ने स्मृति में देश और समाज के प्रति संवेदनशील राजनेता की नींव डाली। उनका औपचारिक राजनीतिक जीवन 2003 में तब शुरू हुआ जब वे भाजपा में शामिल हुईं। 2004 मे वह महाराष्ट्र में युवा मोर्चा उपाध्यक्ष बनीं। इसके बाद उनका राजनीतिक सफर और ओहदा बढ़ता गया। फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली स्मृति कई भाषाओं पर अधिकार रखती हैं। दरअसल, उनकी नानी बांग्लादेश की विस्थापित बंगाली थीं, दादी मराठी, दादा पंजाबी मल्होत्रा थे और पति गुजराती है।
घर और राजनीति को कभी नहीं मिलाती स्मृति
स्मृति ये सभी भाषाएं बखूबी बोल लेती हैं। कड़क अनुशासित और व्यवस्थित रहने वाली स्मृति ईरानी भले ही मंत्री बन गई हों लेकिन उन्हें महंगे सस्ते का हिसाब किताब मालूम है। उन्हें जानने वाले बताते हैं कि स्मृति को पता है कि खान मार्केट में सब्जी महंगी मिलती है और खन्ना मार्केट में सस्ती। हालांकि खान मार्केट में बाल बांधने के क्लचर की छोटी दुकान उन्हें पसंद है। घर में बच्चे और परिवार का उन्हें पूरा ख्याल रहता है लेकिन वह घर और राजनीति को कभी मिलाती नहीं। दुर्गा मां और भोले बाबा में उनकी अपार श्रद्धा है और वह उन्हें मां और बाबा कहती है। जब कभी उन्हें काम से बाहर जाना पड़ता है तो उनके पति मां बाबा का ख्याल रखते हैं। अमेठी में राहुल को हराने के बाद वह बाबा के दर्शन करने पहले बनारस गईं फिर मुंबई में 14 किलोमीटर पैदल चल कर सिद्धविनायक के दर्शन किये इसके अगले दिन कामाख्या मंदिर में माथा टेका।