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इस दिशा में सिर रखकर सोने से मिलता है सुख, मां लक्ष्मी होती हैं प्रसन्न

इस दिशा में सिर रखकर सोने से मिलता है सुख, मां लक्ष्मी होती हैं प्रसन्न

नींद हमारी दिनचर्या का एक...Editor

नींद हमारी दिनचर्या का एक अभिन्न हिस्सा है। जब हम सोकर उठते हैं, तो खुद को तरोताजा महसूस करते हैं और नींद के दौरान हमारे अंदर पुनः ऊर्जा इकट्ठा हो जाती है। सकारात्मक ऊर्जा स्वतः ही लौट आती है, जिससे हमें फिर से जोर-शोर से काम करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। शास्त्रों के मुताबिक, सोते समय दक्षिण दिशा की ओर पैर नहीं करना चाहिए अर्थात उत्तर दिशा की तरफ सिर रखकर नहीं सोना चाहिए। हमें सदैव ही पूर्व अथवा दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना चाहिए। इन दोनों ही दिशाओं में सिर रखकर सोने से लंबी आयु प्राप्ति होती है और स्वास्थ्य भी सही रहता है।


ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय बताते हैं कि हिंदू धर्म में मृत्यु के उपरांत ही व्यक्ति का सिर उत्तर दिशा में रखा जाता है। ऐसे में हमें दक्षिण की ओर पैर करके बिल्कुल भी नहीं सोना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, सोने की प्रक्रिया संबंध पृश्वी के अंदर मौजूद ध्रुवीय चुंबक से है। शास्त्रों में उसके सहसंबंध में, जैसे पूर्व की ओर सिर करके सोने पर बहुत अच्छा होगा, पश्चिम की ओर सिर करके सोने पर चिंता होती है, क्योंकि पश्चिम यमराज की दिशा है। जब उत्तर की तरफ सिर करके सोएंगे, तो मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाएंगे। इसका रक्त प्रवाह के ऊपर गहरा असर पड़ता है।
खाना खाने तुरंत बाद ही नहीं सोना चाहिए। सोने से पहले ग्रंथो का अध्ययन और भगवान का स्मरण जरूर करें। यदि आप सोने से पहले अगले दिन की कार्ययोजना बना लेते हैं, तो आपका अगला दिन आसानी से गुजरता है। सोने से पूर्व लघुशंका से निवृत्त होकर, हाथ-पैर धोकर और पोंछने के उपरांत ही बिस्तर पर जाएं। पूर्व या दक्षिण की तरफ सिर करके सोना चाहिए। सोने से पहले भजन या मनपसंद संगीत सुनने से नींद अच्छी आती है, जिससे हमारा मन तनावमुक्त हो जाता है।

पूर्व या दक्षिण दिशा में सिर करके सोना विज्ञानसम्मत प्रक्रिया है। इससे कई बीमारियां दूर होती हैं। सौर जगत ध्रुव पर आधारित है। ध्रुव के आकर्षण से दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर प्रगतिशील विद्युत प्रवाह हमारे सिर में प्रवेश करता है और पैरों के रास्ते निकल जाता है। इस तरह सोने से भोजन आसानी से पचता है। सुबह जब हम उठते हैं, तो मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। साथ ही शरीर में स्फूर्ति बरकरार रहती है।

बाईं करवट सोने की प्रक्रिया स्वर विज्ञान पर आधारित होती है। हमारी नाक से जो वायु सांस के रूप में अंदर-बाहर होती है, उसे स्वर कहते हैं। नाक के बाएं छिद्र से सांस लेने और छोड़ने की क्रिया को चंद्र स्वर कहते हैं। इसी तरह दाहिनी ओर के स्वर को सूर्य स्वर कहा जाता है। सूर्य स्वर हमारे शरीर में ऊष्मा उत्पन्न करता है, जिससे हमारे शरीर को भोजन पचाने में सहायता मिलती है।



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