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11 मई को पड़ेगी गंगा सप्तमी, जानें पृथ्वी पर कैसे हुआ मां गंगा का अवतरण...

11 मई को पड़ेगी गंगा सप्तमी, जानें पृथ्वी पर कैसे हुआ मां गंगा का अवतरण...

वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन ही...Editor

वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन ही ब्रह्मा के कमंडल से मां गंगा की उत्पत्ति हुई थी। इसी दिन भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर गंगा शिव की जटाओं में समाई थी। तभी से गंगा सप्तमी का पर्व चला आ रहा है। गंगा सप्तमी के दिन गंगा स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि गंगा सप्तमी के दिन किए गये गंगा स्नान से व्यक्ति के सभी पाप नाश नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पतित पावनी हरिपदी मां गंगा के प्राकट्य दिवस गंगा सप्तमी के दिन उन सभी तीर्थनगरियों में भक्तों का तांता लगा रहता है, जो मां गंगा नदी के तट पर बसे हुए हैं। भोर से ही लोग अपनी सुख-समृद्धि की कामना लिए मां गंगा के पावन जल में डुबकी लगाने पहुंचने लगते हैं। स्नान-ध्यान के पश्चात् मां गंगा और उन्हें पृथ्वी पर लाने वाले भागीरथ जी की पूजा कर लोगों में प्रसाद बांटा जाता है। मां गंगा के अवतरण दिवस पर सुबह से शाम तक गंगा के घाट गंगा मैया के जयकारों, घंटे-घड़ियालों की गूंज और शंख की मधुर ध्वनि से गुंजायमान होते रहते हैं। मां भागीरथी के साधक गंगा लहरी व गंगा स्रोत का पाठ कर मां की साधना आराधना और उसके पश्चात् गंगा मैया की आरती करते हैं।

गंगा के अवतरण की कथा-

शास्त्रों में गंगा की उत्पत्ति के बारे में कई मान्यताएं है। एक कथा के अनुसार मां गंगा का जन्म भगवान विष्णु के पैर के पसीनें की बूंदों से हुआ है। वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार गंगा का जन्म भगवान ब्रह्रा के कमंडल से हुआ था। एक मान्यता यह भी है कि कि गंगा सप्तमी के दिन ही ब्रह्मलोक में रास करते हुए राधा-कृष्ण इतने लीन हो गए कि दोनों मिलकर जल बन गए। उसी जल को ब्रह्मा ने अपने कमंडल में जगह दी। हालांंकि सबसे प्रचलित कथा के अनुसार, भगीरथ ने पृथ्वी पर कपिल मुनि के श्राप से ग्रसित राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों के उद्धार और समस्त प्रणियों के जीवन की रक्षा के लिए घोर तपस्या करके मां गंगा को धरती पर लेकर आए थे। स्वर्ग लोक में बह रही मां गंगा जब दिए गए वरदान के अनुसार पृथ्वी पर आने के लिए तैयार हुईं तो धरती कांप उठी। उस समय राजा भगीरथ ने भगवान शिव से प्रार्थना कर मां गंगा के वेग को कम करने का आग्रह किया, तब गंगा सप्तमी के दिन ही गंगा शिव जटाओं में समा गई। इसके बाद कैलाश से बहते हुए फिर धराधाम पर आई। इस दिन गंगा पूजन से सभी तरह के पापों और दोषों से मुक्ति मिल जाती है और यश की प्राप्ति होती है।

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