भाद्रपद अमावस्या 2025: 22 अगस्त की रात से लगी अमावस्या तिथि, 23 अगस्त को होंगे व्रत-दान और पूजन

भाद्रपद माह की अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। पंचांग गणना के अनुसार, इस बार अमावस्या तिथि आज 22 अगस्त शुक्रवार की रात से प्रारंभ हो चुकी है। हालांकि, उदयातिथि के नियमों के कारण व्रत, स्नान, दान और पूजन जैसे सभी धार्मिक कार्य 23 अगस्त शनिवार को संपन्न किए जाएंगे।
अमावस्या का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्मशास्त्रों में अमावस्या तिथि को पूर्वजों की स्मृति और पितरों की तृप्ति के लिए श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन लोग नदी या पवित्र सरोवर में स्नान कर पितरों के नाम से तर्पण करते हैं और ब्राह्मणों को दान देते हैं। यह मान्यता है कि ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और परिवार पर आने वाले कष्ट दूर हो जाते हैं।
भाद्रपद अमावस्या के शुभ कार्य
भाद्रपद अमावस्या पर स्नान-दान का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और गरीबों व जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और दक्षिणा दान करते हैं। साथ ही पीपल के वृक्ष की पूजा और उसके नीचे दीप प्रज्वलित करने की परंपरा भी है। धर्मग्रंथों में वर्णित है कि इस दिन दान-पुण्य करने से पितृ दोष समाप्त होता है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
पितरों को तृप्त करने का दिन
भाद्रपद माह की अमावस्या को पितृ तर्पण का विशेष दिन माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि "अमावस्या तिथि पितृ पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ है।" इसलिए इस दिन गंगाजल, तिल, अक्षत और कुशा के साथ तर्पण करना शुभ माना जाता है। श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया यह पूजन पितरों को तृप्त करता है और उनके आशीर्वाद से जीवन में शांति और समृद्धि का संचार होता है।
व्रत और पूजा की परंपरा
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने, तिल का उबटन लगाने और गंगाजल से स्नान करने की परंपरा है। घर में पूर्वजों की स्मृति में दीप जलाना और भगवान विष्णु के साथ-साथ शिव की उपासना करना शुभ फलदायी माना जाता है। व्रत रखने वाले भक्त दिनभर संयम और श्रद्धा के साथ उपवास करते हैं और शाम को पूजन के बाद फलाहार ग्रहण करते हैं।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।