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7 जुलाई से शुरू हुआ चातुर्मास: अब सृष्टि की बागडोर भगवान शंकर के हाथों में, जानिए इसका धार्मिक महत्व और नियम

7 जुलाई से शुरू हुआ चातुर्मास: अब सृष्टि की बागडोर भगवान शंकर के हाथों में, जानिए इसका धार्मिक महत्व और नियम
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हिंदू धर्म में वर्ष के कुछ माह को विशेष रूप से धार्मिक अनुशासन और साधना के लिए निर्धारित किया गया है, जिसे चातुर्मास कहा जाता है। 7 जुलाई 2025 से चातुर्मास की शुरुआत हो चुकी है। इस दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले गए हैं और अब अगले चार महीनों तक सृष्टि संचालन का कार्य भगवान शिव करेंगे। इस काल को शास्त्रों में अत्यंत पवित्र माना गया है, लेकिन साथ ही इसमें कुछ विशेष नियमों का पालन भी आवश्यक होता है।

क्या है चातुर्मास और क्यों होती है इसकी शुरुआत?

चातुर्मास शब्द संस्कृत के "चतुर्" (चार) और "मास" (महीना) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है – चार महीनों की अवधि। यह काल आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) से आरंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी एकादशी) तक चलता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस अवधि में भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं, अतः इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, यज्ञोपवीत जैसे शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।

सृष्टि की जिम्मेदारी अब शिव के पास

भगवान विष्णु के विश्राम काल में भगवान शिव सृष्टि की देखरेख का कार्य संभालते हैं। इस दौरान शिव आराधना, उपवास, ध्यान और आत्मचिंतन का विशेष महत्व होता है। पवित्र नदी में स्नान, व्रत, जप और तप की परंपरा इसी काल में अधिक प्रचलित है। श्रावण मास में शिवभक्ति और नियमित पूजा करना चातुर्मास में सर्वाधिक पुण्य प्रदान करता है।

इस दौरान किन कार्यों से बचना चाहिए?

चातुर्मास में किसी भी नए कार्य की शुरुआत को वर्जित बताया गया है। जैसे कि विवाह, नया व्यापार, गृह निर्माण, वाहन खरीदारी आदि। साथ ही शास्त्रों में इस अवधि में भोजन और दिनचर्या को भी संयमित रखने की सलाह दी गई है। अधिक तला-भुना, मांसाहार और नशे से बचना चाहिए। ब्रह्मचर्य और सात्त्विकता का पालन इस काल में आत्मिक शुद्धि का मार्ग है।

चातुर्मास: आत्मशोधन और साधना का श्रेष्ठ समय

चार महीनों तक चलने वाला यह धार्मिक काल केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मिक विकास और तपस्या का अवसर है। संत-महात्मा इसी काल में स्थायी रूप से एक ही स्थान पर रहकर साधना करते हैं। भक्तजन भी व्रत, जप, भक्ति और धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन में लीन रहते हैं। यह समय स्वयं को भीतर से जानने और ईश्वर से जुड़ने का श्रेष्ठ अवसर प्रदान करता है।

चातुर्मास का करें पालन, जीवन में आएगी शांति और सकारात्मकता

7 जुलाई 2025 से शुरू हुआ चातुर्मास न केवल धार्मिक नियमों का समय है, बल्कि यह आत्मिक साधना और ईश्वरीय शक्ति से जुड़ने का माध्यम भी है। इस काल में संयमित जीवन, शिव भक्ति, और नियमों का पालन करके व्यक्ति अपने जीवन को नई दिशा और गहराई प्रदान कर सकता है। यह समय मौन, मनन और अध्यात्म का है – इसलिए इसे व्यर्थ न जाने दें।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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