गणेश चतुर्थी 2025: वास्तु नियमों के साथ करें गणपति पूजन, घर में आएगी समृद्धि और दूर होंगी सभी बाधाएं

गणेश चतुर्थी और वास्तु का संबंध
गणेश चतुर्थी का पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन भक्त अपने घरों और पंडालों में बप्पा को विराजमान कर विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अनुसार, यदि गणेश पूजन वास्तु नियमों के साथ किया जाए तो यह और भी अधिक शुभ फल देता है। कहा जाता है कि इससे घर में सुख-समृद्धि, धन-धान्य और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
गणेश जी की स्थापना किस दिशा में करें
वास्तु शास्त्र में गणपति की स्थापना की दिशा का विशेष महत्व बताया गया है। गणेश जी की मूर्ति या चित्र को घर के उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में रखना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह स्थान शांति और समृद्धि का प्रतीक है। ध्यान रहे कि मूर्ति की पीठ दीवार से सटी हो और घर के मुख्य द्वार की ओर मुंह रहे।
पूजा के समय अपनाएं ये वास्तु नियम
1. गणपति पूजन के समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
2. पूजन स्थल पर लाल या पीले रंग का आसन बिछाना शुभ होता है।
3. दीपक को हमेशा दक्षिण-पूर्व दिशा में रखें।
4. पूजा में दूर्वा घास, मोदक और लाल पुष्प का अर्पण अवश्य करें।
लाभ और मान्यता
गणेश चतुर्थी के दिन वास्तु नियमों के अनुसार पूजन करने से घर में धन की वृद्धि, शांति का वास और बाधाओं का अंत होता है। साथ ही, बप्पा की विशेष कृपा से जीवन में रुकावटें दूर होती हैं और नए अवसर मिलने लगते हैं। यही कारण है कि हर वर्ष करोड़ों भक्त इस पर्व का इंतजार करते हैं और श्रद्धा से गणपति को अपने घर आमंत्रित करते हैं।
गणेश चतुर्थी का सांस्कृतिक महत्व
यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सामाजिक एकता और भक्ति का उत्सव भी है। जब भक्त वास्तु शास्त्र और पारंपरिक नियमों का पालन करके बप्पा की पूजा करते हैं तो परिवार में सकारात्मक ऊर्जा, सौहार्द और आत्मविश्वास बढ़ता है। यही कारण है कि गणेश चतुर्थी को "विघ्नहर्ता" और "सुखकर्ता" का पर्व कहा जाता है।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।