गया में पिंडदान 2025: पितृपक्ष में क्यों है विशेष महत्व, जानें धार्मिक मान्यता और आस्था

गयाजी क्यों है पिंडदान के लिए विशेष?
हिंदू धर्म में गयाजी को पितरों की मुक्ति का सर्वोच्च स्थल माना गया है। मान्यता है कि यहां आकर पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि पितृपक्ष के अवसर पर लाखों श्रद्धालु गयाजी पहुंचकर अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
पिंडदान और श्राद्ध कर्म का धार्मिक महत्व
पिंडदान केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह आत्मीय भावनाओं से जुड़ा हुआ कर्म है। गयाजी में पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। ऐसा विश्वास है कि यहां किया गया पिंडदान कई पीढ़ियों तक पितरों की आत्मा को तृप्त करता है।
पितृपक्ष में गयाजी की रौनक
पितृपक्ष का समय गयाजी के लिए अत्यंत विशेष होता है। इस दौरान देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। फाल्गु नदी के तट और विष्णुपद मंदिर परिसर में सुबह से ही पिंडदान और तर्पण की विधियां शुरू हो जाती हैं। पूरा शहर धार्मिक वातावरण से गूंज उठता है।
गयाजी में पिंडदान का महत्व शास्त्रों में
धार्मिक ग्रंथों में गयाजी का उल्लेख पितरों की मुक्ति का सबसे पवित्र स्थल माना गया है। कहा जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु ने यहां पितरों के उद्धार का वरदान दिया था। इसलिए यह स्थान "मोक्षभूमि" के रूप में प्रसिद्ध है।
गयाजी में पिंडदान करना केवल धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति कर्तव्य और सम्मान का प्रतीक है। इस पावन भूमि पर किए गए श्राद्ध और तर्पण से पितरों की आत्मा को तृप्ति और परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। यही कारण है कि गयाजी को पितृपक्ष का सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।