देशभर में आज मनाई जाएगी हल षष्ठी, बलराम जयंती का पर्व

हल षष्ठी पर्व का धार्मिक महत्व
आज पूरे देश में आस्था और श्रद्धा के साथ हल षष्ठी का पावन पर्व मनाया जा रहा है। इस तिथि का संबंध भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई, बलराम जी से है। मान्यता है कि इसी दिन बलराम जी का जन्म हुआ था, इसलिए इसे बलराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। बलराम जी को हल और गदा के प्रतीक के रूप में जाना जाता है और उन्हें खेती-बाड़ी तथा कृषि का देवता माना जाता है।
बलराम जयंती की कथा और मान्यता
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, बलराम जी का जन्म श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ था। उनका जीवन पराक्रम, बल और धर्म पालन का आदर्श उदाहरण है। हल षष्ठी के दिन महिलाएं विशेष रूप से व्रत रखती हैं और बलराम जी की पूजा करती हैं ताकि परिवार में सुख-समृद्धि और संतान की लंबी आयु बनी रहे। इस दिन हल से जोतकर उगाई गई अनाज और फल खाने की परंपरा नहीं होती, बल्कि दूध, दही और मौसमी फल ग्रहण किए जाते हैं।
पूजा-व्रत और परंपराएं
हल षष्ठी के दिन प्रातःकाल स्नान कर महिलाएं बलराम जी की मूर्ति या चित्र के सामने जल, फूल, रोली, अक्षत और मौसमी फल अर्पित करती हैं। साथ ही, बलराम जी के प्रिय हथियार हल और गदा का प्रतीकात्मक पूजन किया जाता है। दिनभर उपवास रखा जाता है और शाम को कथा सुनकर व्रत का समापन किया जाता है।
सांस्कृतिक महत्व
यह पर्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि कृषि और ग्रामीण जीवन से भी जुड़ा हुआ है। बलराम जी को धरती का पालनहार और किसानों का संरक्षक माना जाता है। इस वजह से हल षष्ठी का पर्व विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और कृषक समुदाय में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।