कृष्ण जन्माष्टमी 2025: 15 और 16 अगस्त दोनों दिन मनाई जाएगी श्रीकृष्ण की जन्मलीला, जानिए क्यों और कब है उत्तम मुहूर्त

कृष्ण जन्माष्टमी 2025: 15 और 16 अगस्त दोनों दिन मनाई जाएगी श्रीकृष्ण की जन्मलीला, जानिए क्यों और कब है उत्तम मुहूर्त
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हिंदू धर्म में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व अत्यंत श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिनका प्राकट्य भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। वर्ष 2025 में यह पावन अवसर 15 और 16 अगस्त दोनों दिन मनाया जाएगा, जिससे श्रद्धालु वर्ग में तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति है।

कब लगेगी अष्टमी तिथि? पंचांग के अनुसार जानिए

हिंदू पंचांग के मुताबिक, अष्टमी तिथि की शुरुआत 15 अगस्त 2025 की रात 11 बजकर 49 मिनट पर हो रही है और यह तिथि समाप्त होगी 16 अगस्त की रात 9 बजकर 34 मिनट पर। यही कारण है कि इस वर्ष जन्माष्टमी 15 और 16 अगस्त दोनों दिन मनाई जाएगी — एक दिन स्मार्तों के लिए और दूसरा दिन वैष्णवों के लिए उपयुक्त माना गया है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिस दिन अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र का संयोग रात्रि के समय होता है, वही दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के लिए सबसे पावन और उपयुक्त माना जाता है। अतः पंचांग अनुसार यह विशेष संयोग 16 अगस्त को बन रहा है, इसलिए कई प्रमुख वैष्णव मंदिरों में 16 अगस्त को जन्मोत्सव का आयोजन किया जाएगा।

कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा विधि और रात्रि व्रत का महत्व

इस दिन व्रती सूर्योदय से ही व्रत का संकल्प लेकर दिनभर उपवास रखते हैं। मंदिरों और घरों में श्रीकृष्ण के बालरूप की झांकियां सजाई जाती हैं। भक्त रात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण जन्म का उत्सव मनाते हैं, मंत्रोच्चार और भजन-कीर्तन के बीच माखन-मिश्री का भोग अर्पित किया जाता है।

मध्यरात्रि में जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, उस समय विशेष पूजन और आरती की जाती है। फिर भक्तगण व्रत का पारण कर प्रसाद ग्रहण करते हैं। जन्माष्टमी के व्रत को विशेष पुण्यदायी माना गया है और इससे जन्म-जन्म के पाप कट जाते हैं।

क्यों होती है जन्माष्टमी दो दिन और कैसे करें सही तिथि का चयन?

जन्माष्टमी के दो दिन मनाए जाने का कारण स्मार्त और वैष्णव परंपरा का भिन्न-भिन्न नियम है। स्मार्त लोग (गृहस्थ धर्म के अनुयायी) पहले दिन अष्टमी तिथि को मानते हैं, जबकि वैष्णव संप्रदाय वाले रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी के मध्य रात्रि संयोग की प्रतीक्षा करते हैं। अतः यदि आप मंदिरों या वैष्णव परंपरा से जुड़े हैं, तो 16 अगस्त को व्रत और पूजन करना श्रेष्ठ माना गया है।

दोनों तिथियां विशेष, आस्था के अनुसार करें पूजन

वर्ष 2025 की कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 15 और 16 अगस्त दोनों ही दिन भक्तिभाव से मनाया जा सकता है। यह पर्व केवल तिथि का नहीं, बल्कि भक्ति, प्रेम और सेवा भाव का प्रतीक है। भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं, उनका दिव्य चरित्र और गीता ज्ञान आज भी मानवता के लिए मार्गदर्शक हैं। श्रद्धा, नियम और संकल्प से किया गया यह व्रत जीवन में सौभाग्य और शुभफल लाता है।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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