पहाड़ के 'दशरथ मांझी' नहीं रहे, खुद के दम पर किया था ऐसा काम जानकर करेंगे गर्व
- In उत्तराखंड 7 July 2018 12:53 PM IST
चंपावत के 'दशरथ मांझी' के नाम से विख्यात पूर्व फौजी बृजेश चंद्र बिष्ट (38) की जहर खाने से मौत हो गई है।
जिला अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद बृहस्पतिवार को उन्हें हायर सेंटर रेफर किया गया था, लेकिन अस्पताल ले जाते समय उनकी रास्ते में ही मौत हो गई। शुक्रवार को देर शाम खेतगाड़ी में उनका अंतिम संस्कार किया गया। गमगीन माहौल में उनके दोनों बेटों ने चिता को मुखाग्नि दी।
मई 2017 में फौज की शानदार सेवा के बाद रिटायर हुए बृजेश चंद्र बिष्ट खेतीबाड़ी के अलावा टैक्सी भी चलाते थें। बताया गया कि पिछले कुछ समय से तनाव के कारण वे नशे की गिरफ्त में आ गए थे। परिजन उनकी इस आदत में सुधार के लिए नशा मुक्ति केंद्र भी ले जाना चाहते थे, मगर इससे पहले ही उन्होंने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। पिता के अलावा वे अपने पीछे पत्नी के अलावा तीन बच्चों को छोड़ गए। अंतिम संस्कार के दौरान विधायक पूरन सिंह फर्त्याल सहित क्षेत्र के लोगों ने उन्हें नम आंखों से विदाई दी।
हर पल साथ रहते थे बृजेश
चंपावत जिले के 'दशरथ मांझी' कहे जाने वाले बृजेश बिष्ट ने अपने दम पर सड़क बनाकर जहां उन्होंने गांव तक लोगों की राह सुगम की वहीं के बारे में गांववालों का खूब सहयोग भी करते थे। इलाके के क्षेत्र पंचायत सदस्य व भाजपा जिला महामंत्री नवीन बोहरा कहते हैं कि उन्हें यकीन नहीं हो रहा कि जोश व जुनून से भरपूर बृजेश अब हमारे बीच नहीं है। वे हमेशा गांव के हर रचनात्मक कार्य में बढ़-चढ़ कर आगे रहते थे।चंद्रशेखर बिष्ट ने बताया कि लोगों को आगे बढ़ने वाला व्यक्ति अपने जीवन से कैसे हार गया, यह समझ में नहीं आया। महेश बोहरा, जीवन, साकेत पुनेठा, राकेश बोहरा आदि भी उनकी सहयोगी प्रवृत्ति के कायल हैं।
पांच हजार रुपये में बना दी थी 1.20 किमी रोड
अपने सड़क विहीन गांव पुष्पनगर तोक को सड़क से जोड़ने की जिद को फौजी बृजेश बिष्ट ने महज पांच हजार रुपये में पूरा करके दिखाया था। सड़क निर्माण में आई अड़चनों को पीछे छोड़ उन्होंने अकेले ही मझेड़ा ग्राम पंचायत के पुष्पनगर तोक से खूनामलक तक के 1.20 किमी पैदल मार्ग को आठ फीट चौड़ी सड़क में बदल दिया।
उनके इस नेक काम से गांव के दर्जनों परिवारों को न केवल पैदल आवाजाही से मुक्ति मिली, बल्कि यहां की फसल को सड़क तक पहुंचाना भी आसान हो गया। यद्यपि फौज में रहने के दौरान छुट्टी में घर आने पर वे चार साल पहले से रास्ते को काटकर सड़क बनाने का काम शुरू कर चुके थे, लेकिन पिछले साल मई में रिटायर होने के बाद उन्होंने महज पांच महीने में इस सड़क को पूरा करके प्रशासन को आइना दिखाया।
तबसे इस मार्ग से कार व जीप आसानी से निकल रही है। इस बहादुरी भरे काम के बाद उन्हें लोग चंपावत का 'दशरथ मांझी' कहने लगे थे। सेना की मध्य कमान के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल बलवंत नेगी की ओर से 29 दिसंबर 2017 को तीन कुमाऊं रेजीमेंट के कर्नल धीरज कुमार ने पिथौरागढ़ में इस पूर्व फौजी को एक लाख रुपये का चेक दिया था। रानीखेत में इस साल 25 मार्च को उमेश डोभाल स्मृति कार्यक्रम में भी उनका सम्मान किया गया था। सम्मान स्वरूप उन्हें 11 हजार रुपये का चेक प्रदान किया गया था।