उत्तराखंड सरकार के दावों की खुली पोल, कई गांवों में ग्राम प्रधानों के घरों तक में शौचालय नहीं
- In उत्तराखंड 30 Oct 2018 1:50 PM IST
राज्य सरकार ने कुछ समय पहले उत्तरकाशी जिले को पहला ओडीएफ जिला घोषित कर खुद की पीठ थपथपाई थी। लेकिन, जमीनी हकीकत यह है कि उत्तरकाशी के कई गांवों के ग्राम प्रधानों के घरों तक में शौचालय नहीं हैं।
आलम यह है कि गांवों के सभी ग्रामीणों को खुले में शौचालय जाना पड़ रहा है। इतना ही नहीं इन इलाकों में स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन जैसी बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। स्थिति यह है कि मरीजों को इलाज कराने के लिए 50 किमी दूर पुरोला तक का सफर करना पड़ रहा है। वहीं छात्र-छात्राओं को दूसरे कस्बों में जाकर किराए के कमरोें में रहकर पढ़ाई करनी पड़ रही है।
'पलायन एक चिंतन' के संयोजन में आयोजित कमल जोशी स्मृति छह दिवसीय हिमालय दिग्दर्शन यात्रा के समापन के बाद 15 सदस्यीय ट्रेकर्स दल दून पहुंचा। संस्था के संयोजक रतन सिंह असवाल ने पत्रकार वार्ता कर यात्रा से जुड़ी जो जानकारियां साझा की हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाली हैं, बल्कि सरकार की ओर से विकास को लेकर किए जा रहे दावों की कलई भी खोलती हैं।
संस्था संयोजक असवाल के मुताबिक, सरकार की ओर से पूरे उत्तरकाशी को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया है। जबकि हकीकत यह है कि जिले के देवजानी ग्रामसभा के देवजानी और जीवाणु जैसे गांवों में एक भी शौचालय नहीं है। यहां तक कि ग्राम प्रधान विमला देवी के घर पर भी शौचालय नहीं है।
यहां तीन सौ से अधिक की आबादी निवास करती है। इसी प्रकार सर बड़ियार घाटी की ग्राम पंचायत सर के तीन गांवों सर, घिंगाड़ी और गंगटाड़ी में केवल दो शौचालय ही बने हैं। यहां भी ग्राम प्रधान यलमी देवी के घर शौचालय नहीं है। सर गांव में एक परिवार द्वारा इसी महीने शौचालय का निर्माण कराया गया है, लेकिन बजट नहीं होने की वजह से दरवाजे नहीं लग पाए हैं।
इसके अलावा इन इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन जैसी बुनियादी सुविधाआें का घोर अभाव है। ऐसे में छात्र-छात्राओं को पढ़ाई के लिए भी राजगढ़ी, पुरोला और बड़कोट में जाकर पढ़ाई करनी पड़ रही है। स्वास्थ्य सुविधाओं का भी घोर अभाव है। बीमार होने की स्थिति मरीजों को 50 किमी दूर पुरोला में ही स्वास्थ्य सुविधा मिल पाती है। इतना ही नहीं इन इलाकाें में पेयजल की भारी किल्लत है। ग्रामीण पूरी तरह प्राकृतिक जलस्रोतों पर निर्भर हैं।
क्षेत्र में परिवहन व्यवस्था भी भगवान भरोसे है। देवजानी तक तो इन दिनों सड़क निर्माण का कार्य चल रहा है। लेकिन सर बड़ियार के ग्रामीणों को आज भी राजगढ़ी, गंगताड़ी तक 10 किमी पैदल चलकर घने जंगलों और नदियों के बीच होकर सड़क तक पहुंचना पड़ता है। बरसात में यहां के आठ गांव पूरी तरह से दुनिया से कट जाते हैं। संचार क्रांति के इस दौर में क्षेत्र के लोगों के लिए माकूल संचार व्यवस्था नहीं है।
संस्था संयोजक रतन असवाल ने बताया कि यह क्षेत्र पर्यटन, औद्यानिकी, जैविक खेती, उन व रेशा उद्योग की संभावनाओं से भरा पड़ा है। क्षेत्र में गड्डूगाड़ और बड़ियार गाड़ जैसी नदियों के किनारे कैंपिंग के साथ ही उच्च हिमालयी बुग्यालों में कैंपिंग ट्रेकिंग की अपार संभावनाएं हैं। आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित होने की वजह से यहां सेब उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। पर्याप्त भेड़ पालन के बावजूद यहां उन का समुचित उपयोग नहीं हो पाता है। यहां हैंडलूम ट्रेनिंग व विपणन केंद्र विकसित किए जा सकते हैं।
असवाल ने बताया कि नए पर्यटक स्थलों को चिह्नित करने व उन्हें विकसित कर रोजगार की संभावनाएं विकसित करना संस्था का लक्ष्य है। इस वर्ष भी संस्था देवजानी से केदारकांठा तक एक नया ट्रैक सामने लाने में कामयाब रही है। ट्रेकिंग दल में रतन सिंह असवाल विजयपाल रावत, प्रवीन कुमार भट्ट, नेत्रपाल यादव, तनुजा जोशी, अजय कुकरेती, विनोद मुसान, इंद्र सिंह नेगी, सिद्धार्थ रावत, दलबीर रावत, जितेश, प्रणेश असवाल, सौरभ असवाल, सुनील कंडवाल समेत स्थानीय नागरिक भी शामिल थे।
क्षेत्र में परिवहन व्यवस्था भी भगवान भरोसे है। देवजानी तक तो इन दिनों सड़क निर्माण का कार्य चल रहा है। लेकिन सर बड़ियार के ग्रामीणों को आज भी राजगढ़ी, गंगताड़ी तक 10 किमी पैदल चलकर घने जंगलों और नदियों के बीच होकर सड़क तक पहुंचना पड़ता है। बरसात में यहां के आठ गांव पूरी तरह से दुनिया से कट जाते हैं। संचार क्रांति के इस दौर में क्षेत्र के लोगों के लिए माकूल संचार व्यवस्था नहीं है।
संस्था संयोजक रतन असवाल ने बताया कि यह क्षेत्र पर्यटन, औद्यानिकी, जैविक खेती, उन व रेशा उद्योग की संभावनाओं से भरा पड़ा है। क्षेत्र में गड्डूगाड़ और बड़ियार गाड़ जैसी नदियों के किनारे कैंपिंग के साथ ही उच्च हिमालयी बुग्यालों में कैंपिंग ट्रेकिंग की अपार संभावनाएं हैं। आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित होने की वजह से यहां सेब उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। पर्याप्त भेड़ पालन के बावजूद यहां उन का समुचित उपयोग नहीं हो पाता है। यहां हैंडलूम ट्रेनिंग व विपणन केंद्र विकसित किए जा सकते हैं।
असवाल ने बताया कि नए पर्यटक स्थलों को चिह्नित करने व उन्हें विकसित कर रोजगार की संभावनाएं विकसित करना संस्था का लक्ष्य है। इस वर्ष भी संस्था देवजानी से केदारकांठा तक एक नया ट्रैक सामने लाने में कामयाब रही है। ट्रेकिंग दल में रतन सिंह असवाल विजयपाल रावत, प्रवीन कुमार भट्ट, नेत्रपाल यादव, तनुजा जोशी, अजय कुकरेती, विनोद मुसान, इंद्र सिंह नेगी, सिद्धार्थ रावत, दलबीर रावत, जितेश, प्रणेश असवाल, सौरभ असवाल, सुनील कंडवाल समेत स्थानीय नागरिक भी शामिल थे।