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निकाय चुनाव में खुद भाजपा नहीं भांप पाई अंडर करंट

निकाय चुनाव में खुद भाजपा नहीं भांप पाई अंडर करंट

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निकाय चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन खुद पार्टी के लिए भी अप्रत्याशित कहा जा सकता है। सूबे की सियासत में पिछले पांच साल से मजबूती से पैर जमाए भाजपा को यह भरोसा जरूर था कि उसे निकाय चुनाव में केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की त्रिवेंद्र सरकार के कामकाज के आधार पर जनादेश मिल सकता है, मगर जिस तरह के नतीजे आए, उस तरह के 'अंडर करंट' को पार्टी के रणनीतिकार भी नहीं भांप पाए।

हरिद्वार और कोटद्वार नगर निगम में हार पार्टी के लिए जरूर झटका देने वाली रही, मगर इसे अप्रत्याशित नहीं कहा जा सकता। सच तो यह है कि भाजपा दो से तीन नगर निगमों में प्रत्याशी की स्थिति को लेकर पहले से ही कोई बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं पाले हुए थी।

यूं तो उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के पहले से ही तत्कालीन उत्तर प्रदेश के इस हिस्से में भाजपा मजबूत जनाधार खड़ा कर चुकी थी लेकिन वर्ष 2014 के बाद से पार्टी यहां एकछत्र राज कर रही है। नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड को देश का 27 वां राज्य बनाने का श्रेय भी केंद्र में सत्तासीन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को ही जाता है। इसके बावजूद डेढ़ वर्ष बाद 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा यहां जनमत पाने में विफल रही।

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