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आजीविका के संबल से सशक्त हो रही हैं यहां की महिलाएं

आजीविका के संबल से सशक्त हो रही हैं यहां की महिलाएं

विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में...Editor

विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में पर्वतीय क्षेत्र के विकास की मुख्य धुरी कही जाने वाली मातृशक्ति बदलते वक्त के साथ धीरे-धीरे सशक्त हो रही है। रोजाना 18 घंटे तक घर-परिवार से लेकर खेत खलिहानों तक में खटने वाली महिलाओं का बोझ न सिर्फ कुछ हद तक कम हुआ है, बल्कि वे आर्थिक सशक्तीकरण की इबारत भी लिख रही हैं। उन्हें संबल मिला ग्राम्य विकास विभाग की अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आइएफएडी) पोषित एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना (आइएलएसपी) से।

प्रदेश के 11 जिलों के 44 विकासखंडों में संचालित इस परियोजना के तहत गठित 13500 समूहों से जुड़े 1.25 लाख लोगों में 1.06 लाख महिलाएं हैं। इसके अलावा समूहों की निगरानी और विपणन व्यवस्था के लिए गठित 233 फेडरेशनों के बोर्ड में भी 65 फीसद महिलाएं बतौर निदेशक कार्य कर रही हैं।

पर्वतीय क्षेत्र के ग्रामीण परिवारों को आजीविका के अवसर मुहैया कराने के साथ ही उन्हें बाजार से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से ग्राम्य विकास विभाग ने वर्ष 2012-13 में आइएलएसपी की शुरुआत की। आइएफएडी के वित्त पोषण से चल रही इस परियोजना में मुख्य फोकस महिलाओं पर रखा गया, ताकि उनका बोझ कम करने के साथ ही उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा सके।

इस कड़ी में अल्मोड़ा, बागेश्वर, चमोली, टिहरी, उत्तरकाशी, रुदप्रयाग, पिथौरागढ़, देहरादून, पौड़ी, चंपावत और नैनीताल जिलों के 44 विकासखंडों के 2100 गांवों में समूह गठित किए गए। साथ ही कृषि, खाद्य उत्पाद, ग्रामीण पर्यटन, हस्तशिल्प, कारीगरी आदि व्यवसायों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की गई। इसके अलावा उत्पादों के विपणन समेत अन्य कार्यों से संबंधित दिक्कतों को दूर करने के लिए सहकारिता पर आधारित फेडरेशन गठित किए गए। इन कोशिशों के सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं। आइएलएसपी में गठित समूहों के उत्पादों की 'हिलांस' ब्रांड के नाम से मार्केटिंग की जा रही है। हिलांस ने देशभर में अच्छी पहचान बनाई है।

पूर्व में बागेश्वर जिले की महिलाओं के बनाए मंडुवे के बिस्कुट समेत अन्य उत्पादों की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात कार्यक्रम में उल्लेख किया था। इतना ही नहीं, इस मुहिम के तहत वर्तमान में कृषि क्षेत्र में आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए इन जिलों में 138 फार्म मशीनरी बैंक खोले गए। इसमें 80 फीसद अनुदान और 20 फीसद हिस्सेदारी बैंक खोलने वाला समूह करता है।आइएलएसपी के प्रबंधक (ज्ञान प्रबंधन) राजीव कुमार सिंघल बताते हैं कि फार्म मशीनरी बैंकों के संचालन में महिलाओं ने खासी रुचि ली है। दूरस्थ क्षेत्रों में भी इन बैंकों से किराये पर लिए जाने वाले पावर टिलर समेत अन्य उपकरणों का उपयोग भी महिलाएं खेत जुताई में कर रही हैं। बताया कि इस पहल से महिलाओं के समय और श्रम की बचत हुई है। साथ ही संबंधित क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता भी बढ़ी है।

मंडियों से लिंक हैं फेडरेशन समूहों के उत्पादों के विपणन को जिला स्तर पर एक-एक आउटलेट खोले गए हैं, जबकि राज्य स्तर का आउटलेट देहरादून में है। समूहों से उत्पाद लेकर फेडरेशन इन्हें आउटलेट में भेजते हैं। फेडरेशनों को राज्य की कृषि उत्पादन मंडी समितियों से भी लिंक गया है।

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