शिवसेना की धमक कम नजर आती

शिवसेना की धमक कम नजर आती
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शिवसेना की गर्जना इन दिनों कम ही सुनाई पड़ती है. राष्ट्रीय फलक पर नरेंद्र मोदी के उदय से पहले राजनीति में शिवसेना की जो धमक हुआ करती थी वो अब कहीं कम नजर आती है. पिछले 5 सालों में महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना की भूमिका 'बड़े भाई' की तुलना में 'छोटे भाई' जैसी हो गई है.

संस्थापक बाल ठाकरे के दौर में खुद को नंबर वन होने का एहसास कराने वाली शिवसेना आज अपना 53वां स्थापना दिवस मना रही है. 19 जून, 1966 को मराठा अस्मिता को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र के स्थानीय लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने के खातिर बाला साहेब ठाकरे ने शिवसेना की नींव रखी थी. शिवसेना की पहचान हिन्दूवादी राजनीतिक दल के रूप में है.

मराठी मानुष के नाम पर राजनीति

शिवसेना की नींव रखने वाले बाल ठाकरे मूल रूप से कार्टूनिस्ट थे और ' मार्मिक' नाम की साप्ताहिक राजनीतिक पत्रिका के जरिए राजनीतिक विषयों पर तीखी टिप्पणी किया करते थे, साथ ही मराठा समाज के लोगों के हक की आवाज भी उठाते थे.

बतौर कार्टूनिस्ट अपार कामयाबी के बाद उन्होंने राजनीतिक मोर्चे पर उतरने का फैसला लिया. आज की तारीख में शिवसेना कई राज्यों में सक्रिय है, लेकिन इसका राजनीतिक प्रभाव महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा है. शिवसेना को राज्यस्तरीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है और चुनाव आयोग की ओर से उसे धनुष-बाण चुनाव चिह्न मिला हुआ है.

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