देवरिया में पिता के सपने को पंख लगा रहीं हैं ये UP की खिलाड़ी बेटियां
- In उत्तरप्रदेश 5 Feb 2018 12:14 PM IST
देवरिया। खेल के मैदान को अपनी पहली पसंद बनाकर शहर के एक चूरन विक्रेता की बेटियां अपने पिता के सपने को पंख लगाने में जुटी है। सात में से चार बेटियों ने खेलों में जिले, प्रदेश तथा देश को शोहरत दिलाने की ठान ली है। देवरिया के पुलिस लाइंस के पास कांशीराम शहरी आवास में रामकेश शुक्ला का परिवार रहता है। आर्थिक तंगी से जूझ रहे रामकेश चूरन बेचते हैं। उनकी सात बेटियां हैं। सबसे बड़ी बेटी रत्नप्रिया की शादी हो चुकी है। दूसरे नंबर की बेटी तपस्विनी व पूजा घर पर रहती हैं। इसके बाद की चार नित्या, सत्या, आर्या और शिल्पी पढ़ाई के साथ-साथ खेल को करियर बना रहीं है।
देवरिया की आर्या शुक्ला फिलहाल अभी मैरीकॉम व गीता फोगाट जैसी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं हासिल कर सकी है, लेकिन उसका संघर्ष इन दोनों महान महिला खिलाडिय़ों से जरूर मिलता-जुलता है। शहर के कांशीराम आवास में रहने वाली आर्या के पिता रामकेश शुक्ल देसी नुस्खों से लोगों का इलाज कर पूरे परिवार का पेट पालते हैं। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने के कारण सात वर्ष पूर्व कांशीराम आवास योजना में एक फ्लैट इन्हें मिल गया था। गरीबी की परवाह किए बगैर सात बेटियों में छठवें नंबर की आर्या ने खुद की पहचान बनाने की ठान ली।
महाराजा अग्रसेन बालिका इंटर कालेज में 12वीं की छात्रा नित्या को खो-खो पंसद है। वह राष्ट्रीय स्तर पर छह बार खेल चुकी है। राजकीय इंटर कालेज में 11वीं की छात्रा सत्या व आर्या, सातवीं की छात्रा शिल्पी को क्रिकेट पसंद हैं। सत्या प्रदेश स्तर तक स्कूली खेल में प्रतिभाग कर चुकी है। आर्या ने अंडर-16 में कानपुर में यूपीसीए कैंप में 10 दिन का प्रशिक्षण लिया, उसका चयन अंडर-16 यूपी टीम में हो गया। सत्या नागपुर में 10 से 14 जनवरी तक खेले गए राष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट में प्रतिभाग कर लौटी है। सबसे छोटी शिल्पी नेशनल स्कूली गेम्स में प्रतिभाग कर चुकी है। चारों बहनें स्व. रविंद्र किशोर शाही स्टेडियम में प्रशिक्षक की निगरानी में अभ्यास करती हैं।
बच्चों को खेलते देखा तो बन गईं खिलाड़ी
जिले के जद्दू परसिया गांव के मूल निवासी रामकेश शुक्ला 30 वर्ष पहले गांव से परिवार के साथ शहर आ गए। यहां रहने का ठौर ठिकाना तलाशते रहे। काफी जद्दोजहद के बाद रहने का ठिकाना मिला। बेरोजगार होने की वजह से दो जून की रोटी का इंतजाम कठिन हो गया। वह चूरन बेचना शुरू कर दिए। उसी से उनकी आजीविका चल रही है। कांशीराम शहरी आवास के कमरे में बहनें दुबकी रहती थीं। 2012 में नित्या रविंद्र किशोर शाही स्टेडियम की तरफ खेलने गई। स्टेडियम में बच्चों को खेलते देखा तो उसके मन में भी खिलाड़ी बनने की इच्छा हुई।