श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव का दूसरा दिन: महाभारत और अमरकथा के प्रसंगों से गूंजा चौबेपुर, श्रद्धालुओं की उमड़ी भावविभोर भीड़

वेदाचार्य पं. विष्णुकांत शास्त्री ने महाभारत और अमरकथा के प्रसंगों के माध्यम से धर्म, भक्ति और पारिवारिक मूल्यों की महत्ता पर डाला प्रकाश।

श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव का दूसरा दिन: महाभारत और अमरकथा के प्रसंगों से गूंजा चौबेपुर, श्रद्धालुओं की उमड़ी भावविभोर भीड़
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वाराणसी के चौबेपुर स्थित सनशाइन पब्लिक स्कूल के प्रांगण में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव के दूसरे दिन का आयोजन अत्यंत दिव्य और आध्यात्मिक वातावरण में संपन्न हुआ। वेदाचार्य पंडित विष्णुकांत शास्त्री जी ने अपने ज्ञानवर्धक प्रवचनों के माध्यम से सैकड़ों श्रद्धालुओं को धर्म, भक्ति, करुणा और मोक्ष की ओर प्रेरित किया।


कथा स्थल को दीपों, पुष्पों और भगवद्भाव से अलंकृत किया गया था। सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी थी, जिनमें बुजुर्ग, महिलाएं, युवा और बच्चे शामिल रहे। शास्त्री जी ने कथा की शुरुआत श्रीकृष्ण वंदना और मंगलाचरण से की, जिसके बाद उन्होंने महाभारत के शिक्षाप्रद प्रसंगों का मार्मिक वर्णन किया।


उन्होंने कहा, “धर्म केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि व्यवहार, सेवा और सम्मान का नाम है। हर व्यक्ति को अपने जीवन में माता-पिता की सेवा को प्रथम धर्म मानना चाहिए। जिस घर में माता-पिता को आदर दिया जाता है, वहां लक्ष्मी स्वयं निवास करती हैं।”


इसके पश्चात उन्होंने भगवान शंकर और माता पार्वती से जुड़ी अमरकथा का वर्णन करते हुए कहा, “यह कथा केवल एक पौराणिक संवाद नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा का मानचित्र है। अमरकथा हमें मृत्यु की नश्वरता का बोध कराते हुए मोक्ष की दिशा में प्रेरित करती है।”


उन्होंने श्रीमद्भागवत महापुराण को "शास्त्रों का सार" बताते हुए कहा कि यह ग्रंथ केवल कथावाचन नहीं, बल्कि जीवन की दिशा और दशा बदलने वाला आध्यात्मिक ग्रंथ है। भक्ति, आत्मचिंतन और सत्य की खोज करने वाले हर व्यक्ति को इसका अध्ययन करना चाहिए।


यह आयोजन श्री चंद्रशेखर तिवारी द्वारा अपने पिता, स्वर्गीय न्यायमूर्ति श्री श्रीषनाथ तिवारी की 28वीं पुण्यतिथि की स्मृति में कराया गया है। उन्होंने आयोजन के पीछे की भावना को साझा करते हुए कहा, “मेरे पिता धर्म और न्याय के प्रति समर्पित थे। इस आयोजन के माध्यम से उनकी स्मृति को आध्यात्मिक श्रद्धांजलि देने का प्रयास है।”


आयोजन में स्थानीय नागरिकों के साथ-साथ आस-पास के गांवों से भी श्रद्धालुओं की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।

समिति ने सभी नागरिकों से शेष दिनों की कथा में सपरिवार सम्मिलित होने का आग्रह करते हुए कहा है कि “ऐसे आयोजनों से न केवल आध्यात्मिक चेतना जागती है, बल्कि समाज में नैतिक मूल्यों का भी संचार होता है।”

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