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वाराणसी के विख्यात बिंदु माधव मंदिर मामले में सुनवाई के लिए कोर्ट ने याचिका स्वीकार किया

वाराणसी के विख्यात बिंदु माधव मंदिर मामले में सुनवाई के लिए कोर्ट ने याचिका स्वीकार किया

ज्ञानवापी परिसर विवाद के बाद...Public Khabar

ज्ञानवापी परिसर विवाद के बाद अब मंगलवार को पंचगंगा घाट स्थित बिंदु माधव मंदिर का मसले से संबंधित एक याचिका दायर हुई है। इतिहासकारों का दावा है कि काशी के धरहरा मस्जिद को औरंगजेब ने विख्यात 'बिंदु माधव मंदिर' को तोड़कर बनवाया था।इस मामले में दाखिल याचिका को न्यायालय सिविल जज जूनियर डिविजन शहर वाराणसी ने आज मूल वाद संख्या 225 सन 2022 दर्ज किया है।

जानकारों की मानें तो मुगल बादशाह औरंगजेब ने वाराणसी में न केवल काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा था, बल्कि अगर किसी दूसरे विख्यात मंदर को औरंगजेब ने तोड़वाया था तो वह था पंचगंगा घाट पर स्थित बिंदु माधव मंदिर।इस मंदिर को अब धरहरा मस्जिद के नाम से जाना जाता है। जानकारों का कहना है कि धरहरा मस्जिद को औरंगजेब ने 1669 के आसपास बनवाया था। इस मस्जिद का निर्माण उसने बड़े चबूतरे पर बिंदु माधव के विख्यात मंदिर को तोड़कर करवाया था।

काशी के पंचगंगा घाट पर स्थित है भगवान बिंदु माधव का मंदिर। पौराणिक मान्यता है कि इस घाट पर गंगा में अदृश्य तौर पर यमुना और सरस्वती सहित दो अन्य गुप्त नदियों का भी संगम होता है। पांच नदियों का संगम स्थल होने के कारण ही इसे पंचगंगा घाट कहा जाता है।मान्यता यह भी है कि प्राचीन काल से ही घाट का नाम बिन्दुमाधव घाट था एवं यहां बिन्दुमाधव और भगवान विष्णु का मंदिर स्थापित था। कहा जाता है कि राजस्थान के राजा मानसिंह ने सत्रहवीं शताब्दी में बिन्दु माधव मंदिर का निर्माण करवाया था।

वर्तमान स्वरूप में दिखने वाले बिन्दु माधव मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में सतारा, महाराष्ट्र महाराजा के प्रतिनिधि भावन राव ने कराया था।इस मंदिर के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि काशी में जो मान्य सप्तपुरी हैं, उनमें बिंदु घाट को कांची का स्वरूप प्राप्त है। बिन्दु माधव मंदिर की तुलना पुरी के विश्व विख्यात जगन्नाथ मंदिर से की जाती है। शरद ऋतु एवं कार्तिक माह में इस घाट पर स्नान दान और पूजन का विशेष महात्म्य है। इस बारे में काशीखण्ड में बताया गया है।पौराणिक मान्यता है कि प्रयागराज में माघ स्नान का जो पुण्य प्राप्त होता है वह पंचगंगा घाट के इस हिस्से पर भी मिलता है।

14वीं और 15 वीं शताब्दी में वैष्णव संत रामानन्द यहीं रहकर श्रीराम कथा व भक्ति का प्रचार-प्रसार करते रहे।पौराणिक मान्यता यह भी है कि उन्नीसवीं शताब्दी के महान संत तैलंग स्वामी मठ में संत तैलंग स्वामी का निवास स्‍थान रहा है। तैलंग स्वामी ने ही मठ में एक विशाल पचास मन के शिवलिंग को भी स्थापित किया। शिव और राम सहित गंगा और भगवान श्रीकृष्‍ण के विशिष्ट आयोजन इस घाट पर होते रहते हैं।

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