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आगरा में सलीम चिश्ती की दरगाह और जामा मस्जिद को कामाख्या मंदिर बताया गया

आगरा में सलीम चिश्ती की दरगाह और जामा मस्जिद को कामाख्या मंदिर बताया गया

एक सनसनीखेज घटनाक्रम में, आगरा...PS

एक सनसनीखेज घटनाक्रम में, आगरा के सिविल न्यायालय सीनियर डिवीजन में फतेहपुर सीकरी स्थित सलीम चिश्ती की दरगाह और जामा मस्जिद को कामाख्या माता का मंदिर और मंदिर परिसर का हिस्सा बताते हुए एक नया दावा दायर किया गया है।


यह दावा अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह द्वारा दायर किया गया है। उन्होंने अपनी याचिका में दावा किया है कि विवादित स्थल 16वीं शताब्दी से पहले से ही एक कामाख्या मंदिर था, और मुगल शासनकाल के दौरान इसे जबरन कब्जा कर लिया गया था और मस्जिद और दरगाह में बदल दिया गया था।


याचिका में यह भी दावा किया गया है कि मंदिर के पुराने अवशेष अभी भी विवादित स्थल पर मौजूद हैं, और यह कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने इन अवशेषों को छिपाने का काम किया है।


अधिवक्ता सिंह ने मांग की है कि अदालत विवादित स्थल का सर्वेक्षण करवाए और यह निर्धारित करे कि यह वास्तव में एक मंदिर था या नहीं। उन्होंने यह भी मांग की है कि अगर यह साबित होता है कि यह मंदिर था, तो इसे हिंदुओं को सौंप दिया जाए।


यह दावा आगरा में सांप्रदायिक तनाव पैदा कर सकता है, क्योंकि सलीम चिश्ती की दरगाह एक लोकप्रिय मुस्लिम तीर्थस्थल है।



अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने फतेहपुर सीकरी में सलीम चिश्ती की दरगाह और जामा मस्जिद को कामाख्या माता मंदिर और मंदिर परिसर का हिस्सा बताते हुए नया दावा दायर किया है। उनका दावा है कि यह स्थल 16वीं शताब्दी से पहले से ही एक मंदिर था और मुगलों ने इसे जबरन कब्जा कर लिया था।


उन्होंने मांग की है कि अदालत विवादित स्थल का सर्वेक्षण करवाए और यह निर्धारित करे कि यह वास्तव में मंदिर था या नहीं।


अदालत याचिका पर सुनवाई करेगी और तय करेगी कि क्या इस मामले में आगे की सुनवाई होनी चाहिए। यदि अदालत आगे की सुनवाई का आदेश देती है, तो एएसआई को विवादित स्थल का सर्वेक्षण करना होगा और अपनी रिपोर्ट अदालत में जमा करनी होगी। अदालत सभी साक्ष्यों पर विचार करेगी और उसके बाद अपना फैसला सुनाएगी।

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