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जानिए क्या है '1267' जिससे बेचैन हैं पाकिस्तान, चीन और सऊदी अरब

जानिए क्या है 1267 जिससे बेचैन हैं पाकिस्तान, चीन और सऊदी अरब

पुलवामा आतंकी हमले को लेकर...Editor

पुलवामा आतंकी हमले को लेकर अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक स्तर पर भारत को बड़ी सफलता मिली है. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद (UNSC) ने इस हमले की निंदा की है जिसका अनुमोदन करने वालों में चीन भी शामिल है. चीन का शामिल होना भारत के अच्छी खबर है. पुलवामा हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान समर्थित जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी. जिसका प्रमुख अजहर मसूद है. चीन लंबे समय से अजहर मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की भारत की मांग का विरोध करता आ रहा है. इस बार चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस हमले की निंदा का विरोध नहीं करते हुए बयान पर सहमति जताई, जबकि इसमें अजहर मसूद के जैश-ए-मोहम्मद का भी नाम शामिल था. इस पूरे घटना क्रम में 1267 के प्रस्ताव की काफी चर्चा रही है जिसको लेकर इन दिनों पाकिस्तान चीन के अलावा सऊदी अरब तीनों असहज रहे हैं.

क्या है चीन की सहमति का मतलब

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य हैं जो किसी भी संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव को वीटो कर खारिज कर सकते हैं. इनमें चीन के अलावा अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस शामिल हैं. पुलवामा हमले के निंदा प्रस्ताव को चीन वीटो कर सकता था लेकिन इससे यह संदेश जाता कि वह आतंकवाद के खिलाफ नहीं है. इसीलिए उसे इस प्रस्ताव को सहमित देनी पड़ी. इसका साफ मतलब यही है कि पाकिस्तान इस मामले में अलग थलग पड़ गया है. पाकिस्तान ने यह समझते हुए कि चीन निंदा प्रस्ताव का विरोध नहीं कर पाएगा, सुरक्षा परिषद की बैठक से पहले ही उसने 2008 मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के संगठन जमात-उद-दावा (जेयूडी) और फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन पर एक बार फिर प्रतिबंध लगा दिया. हालांकि उसने अजहर मसूद पर कोई कार्रवाई नहीं की. वहीं चीन अब तक सुरक्षा परिषद के हर प्रस्ताव का विरोध करता रहा है जिसमें सुरक्षा परिषद की 1267 प्रतिबंध सूची में अजहर मसूद को वैश्विक आतंकवादी के तौर पर शामिल करने की बात रही है. अब चीन का इस तरह का विरोध करना आसान नहीं होगा.

क्या है 1267 संकल्प

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का 1267 संकल्प 15 अक्टूबर 1999 को परिषद ने सर्वसहमति से अपनाया था. उस समय तालिबान, अलकायदा और दुनिया भर में फैले बाकी आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने के लिए उन्हें सूचीबद्ध किया गया था. इस प्रस्ताव के तहत सुरक्षा परिषद किसी आतंकवादी को या आतंकी संगठन को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी या आतंकवादी संगठन घोषित कर सकती है और उस पर व्यापक प्रतिबंध लग जाता है. इस साथ ही संयुक्त राष्ट्र के सभी देश उससे आतंकवादी (या आतंकी संगठन) की तरह रवैया अपनाते हैं, भले ही वे दुनिया में कहीं भी स्थित हों. इस प्रस्ताव के तहत संयुक्त राष्ट्र का कोई भी देश किसी आंतकवादी को वैश्विक आतंकवादी की सूची में शामिल करने का निवेदन कर सकता है जिसका सुरक्षा परिषद का स्थायी समिति का अनुमोदन करना जरूरी है. अगर कोई एक भी स्थायी सदस्यीय देश इस प्रस्ताव का वीटो करता है तो वह निवेदन पारित नहीं होगा. चीन भारत के इस प्रस्ताव को 2016 में वीटो कर चुका है.

पाकिस्तान और चीन इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं हैं

भारत 1267 के तहत कई आतंकियों को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जा चुका है. जिसका पाकिस्तान विरोध भी कर चुका है. वहीं चीन की नीति भारत विरोधी होने के साथ ही पाकिस्तान का समर्थन करने की है. चीन भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले हर विवाद में चीन पाकिस्तान का साथ देता है. ऐसें में कई बार चीन 1267 प्रस्तावों में पाकिस्तान का साथ देता है. चीन और पाकिस्तान 1267 को लेकर सहज नहीं दिखाई देना उनकी नीति में साफ दिखाई देता है. चीन के लिए 1267 का विरोध अब तक भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोकने का जरिया है. वह भारत की स्थायी सदस्यता का खुल कर विरोध करता रहा है. इसके अलावा वह भारत के एनएसजी (राष्ट्रीय सुरक्षा समूह) में शामिल होने पर भी खुल कर ऐतराज जताता रहा है, जबकि इस मामले में भारत को दुनिया के ज्यादातर देशों को समर्थन हासिल है.

सऊदी अरब की क्या है भूमिका

हाल ही में पुलवामा हमले के बाद सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने पाकिस्तान की यात्रा की और वहां 20 बिलियन डॉलर का निवेश भी करने की घोषणा की. इसके अलावा दोनों देशों ने अपने संयुक्त बयान में कहा कि संयुक्त राष्ट्र में किसी को आतंकवादी घोषित करने की प्रक्रिया का राजनीतिकरण बचने की जरूरत है. बताया जा रहा है कि यह सउदी अरब ने पाकिस्तान को खुश करने के लिए बयान दिया है. पुलवामा हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी जिसके बाद से पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ गया है.

दरअसल सऊदी अरब को यमन के खिलाफ अपनी लड़ाई में पाकिस्तान का समर्थन चाहता है. हालांकि उसे अमेरिका का समर्थन हासिल है, लेकिन वह और देशों का भी समर्थन चाहता है जिसमें पाकिसतान से उसे समर्थन मिल सकता है हालांकि पाकिस्तान ने अभी तक उसे खुलकर तो समर्थन नहीं दिया है.

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