नीति और कूटनीति के मोर्चे: मोदी सरकार की ताकत ही बनती जा रही है उसकी कमजोरी
- In बिहार 25 Feb 2018 11:53 AM IST
2014 में सत्ता में आई केन्द्र...Editor
2014 में सत्ता में आई केन्द्र की मोदी सरकार की ताकत ही उसकी कमजोरी बनती जा रही है। खासकर विदेश नीति और कूटनीति के मोर्चे पर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में दक्षिण एशियाई देशों के शिखर नेताओं ने भाग लिया था। इसे तत्कालीन केन्द्र सरकार की विदेश नीति का तुरुप का पत्ता माना गया था और इसकी जमकर तारीफ हुई थी, लेकिन अब इससे जुड़े सवाल पर विदेश मंत्रालय के अधिकारी प्रतिक्रिया देने से बचने लगे हैं। विदेश नीति के जानकारों का मानना है कि मोदी सरकार की पड़ोसियों से अच्छे संबंध रखने की ताकत ही अब भारत की कमजोरी बनती जा रही है।
भारत-नेपाल, भारत-पाकिस्तान, भारत-मालदीव, भारत-श्रीलंका में बहुत कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। भूटान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के साथ रिश्ते यथावत हैं। अफगानिस्तान के साथ स्थिति पहले जैसी थी करीब-करीब उसी तरह से चल रही है। चीन के साथ लगातार तनाव बढ़ रहा है। चीन हमें अपना प्रतिद्वंदी मानकर लगातार घेर रहा है।
क्या कहते हैं पूर्व विदेश सचिव सलमान हैदर
पूर्व विदेश सचिव सलमान हैदर का कहना है कि हमने पिछले सालों में कई बड़ी गलतियां की। इसने हमारे कई पड़ोसी देशों से रिश्ते पर असर डाला है। अंग्रेजों के जमाने से हमारी विदेश नीति थी कि हम भारत के आस-पास के द्वीपों के साथ गहरे रिश्ते रखेंगे। यहां किसी तीसरे देश या शक्ति का आना भारत के हित में नहीं रहेगा। देश आजाद होने के बाद भारत ने इस नीति को और प्रभावी बनाया था। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरु के पंचशील के सिद्धांत ने भी अहम भूमिका निभाई। लेकिन इधर कुछ अच्छा नहीं चल रहा है।
नेपाल- सलमान हैदर कहते हैं कि हमने नेपाल से खुद संबंध बिगाड़े। वहां की जनता को भारत विरोधी मन बनाने का अवसर दिया। ऐसा नेपाल के साथ सीमा पर लंबे समय तक चले ब्लाकेज के कारण हुआ। पूर्व विदेश सचिव इस ब्लाकेज का कोई कारण नहीं मानते और उनका कहना है कि इसके चलते चीन को नेपाल के और करीब जाने का अवसर मिला। जबकि प्रधानमंत्री बनने के बाद हमारे पीएम ने वहां की एक से अधिक यात्रा की। वह पशुपति नाथ का दर्शन भी कर आए। विदेश मंत्री का दौरा होता है, लेकिन संबंध पहले जैसे मधुर नहीं हैं।
भूटान-हमेशा से भारत का अच्छा, सहयोगी पड़ोसी देश है। उसे हम अपनी जेब में समझते हैं। हैदर के अनुसार यह हमारी भूल है। भूटान के लोग भारत के साथ रहना चाहते हैं, लेकिन चीन से बैर भी नहीं चाहते। हैदर का कहना है कि जब भूटान की परेशानी बढ़ती है तो उसके पीछे एक कारण भारत भी होता है। वहां के लोग दो पाटों(भारत-चीन) के बीच में पिसना नहीं चाहते। पूर्व विदेश सचिव का मानना है कि भूटान भारत और चीन के बीच में है। इसलिए भारत को यहां चीन के साथ अपने संबंध में इसकी संवेदनशीलता को हमेशा समझना होगा। हमें भूटान का ख्याल रखना होगा।
मालदीव-सलमान हैदर का मानना है कि जिस तरह से मालदीव में घटनाक्रम हो रहा है, उससे साफ लग रहा है कि वह हमारे हाथ से फिसलता जा रहा है। चीन की मालदीव से बहुत अधिक दूरी है, लेकिन वह मालदीव में अपना प्रभाव बढ़ा चुका है। इसके बरअक्स हमारे केरल के तट बिल्कुल मालदीव से एक तरह से सटे हुए हैं। हैदर का कहना है कि मालदीव को लेकर हमसे बड़ी कूटनीतिक भूल हो रही है।
श्रीलंका-भारत का हम पड़ोसी देश है। हैदर के अनुसार हंबनटोटा में चीन की कंपनियों की मौजूदगी और देश के भीतर चीन की बढ़ रही पैठ को अच्छा नहीं कहा जाएगा। चीन ने वहां काफी जोर लगा रखा है। चीन की जेब भरी हुई है। वह पैसे का अपने हित में उपयोग कर रहा है। हम इसके बरअक्स अपनी संबंध, सहयोग, परंपरा की नीव को मजबूत नहीं कर पा रहे हैं। श्रीलंका बार-बार हाथ से फिसलने का संकेत दे रहा है।
पाकिस्तान-हम संबंधों के तनावपूर्ण दौर में हैं। यह 90 के दशक की याद दिला रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रयास से संघर्ष विराम समझौता हुआ था। पूर्व विदेश सचिव के अनुसार अब सीमा पर गोलीबारी हो रही है। आए दिन जवान शहीद हो रहे हैं। एक तरह से संघर्ष विराम समझौता औचित्यहीन हो गया है। कभी हम दो कदम आगे बढ़ रहे हैं तो कभी डेढ़ कदम डेढ़े होकर पीछे हट रहे हैं। जबकि प्रधानमंत्री वहां के पूर्व प्रधानमंत्री के निजी शादी समारोह में शरीक हो आए। वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ प्रधानमंत्री जी के शपथ ग्रहण में आए थे। उम्मीद थी कि अब पड़ोसियों से अच्छे संबंध आगे बढ़ेगे।
बांग्लादेश-इस पड़ोसी देश के जन्म के साथ हमारा अच्छा रिश्ता रहा है। थोड़े-बहुत उतार चढ़ाव के साथ यह बना हुआ है। लेकिन बांग्लादेश के मामले में अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
अफगानिस्तान-अफगानिस्तान के निर्माण में भारत अहम भूमिका निभाका रहा है। हैदर का कहना है कि ईरान के साथ चाबहार परियोजना पर काम, तुर्कमेनिस्तान से गैस और तेल के पाइप लाइन की संभावना आदि अच्छी खबरें हैं। अफगानिस्तान के साथ भारत के रिश्ते ठीक हैं। लेकिन आने वाले समय में वहां दबाव बढ़ेगा। चीन की नीति अफगानिस्तान में पैठ बढ़ाने की है। उसे वहां गहराई तक ले जाने में पाकिस्तान भूमिका निभा सकता है। चीन की नीतियां आक्रामक है। उसकी दोनों जेब भरी है। इसलिए सावधाने की भी जरूरत है।
क्या रही कमियां
पूर्व विदेश सचिव के अनुसार विदेश नीति की एक पुरानी कहावत है। यह सरहद से शुरू होती है। सीमा के भीतर घुसते ही फौज से मुकाबला होता है। लेकिन हम इसे ठीक ढंग से आगे नहीं बढ़ा पाए। इसके कारण हम एक के बाद एक मोर्चे पर घिरते जा रहे हैं। वहीं हमारा पड़ोसी देश चीन लगातार नई चुनौती लेकर आ रहा है। सलमान हैदर का कहना है कि हम इस चुनौती के साथ तालमेल बिठाकर अपने पुराने, पारंपरिक और सहयोगी देशों से रिश्ते का जरूरी सामंजस्य बिठाने में भी असफल रहे। सलमान हैदर का मानना है कि यह चिंता का विषय है। इसके कारण जमीन और जल क्षेत्र में चीन हमें घेर रहा है। इससे शक्ति संतुलन के बिगड़ते जाने का खतरा पैदा हो गया है।